तेन्दू के वृक्ष की लकड़ी से निर्मित है, देवी की प्रतिमा
गुप्त नवरात्र पर बैतूलवाणी विशेष
चिचोली।(आनंद रामदास राठौर)। जिले की चिचोली तहसील की भौगोलिक स्थिति में चारों ओर स्थापित आध्यात्मिक शक्ति केंद्रों में शामिल हरदू में मौजूद झूले वाली माता का मंदिर असंख्य देवी भक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। चिचोली नगर से 9 किलोमीटर दूर स्थित इस देवी स्थल का इतिहास सदियों पुराना है।सदियों से इस स्थान में लकड़ी से बनी देवी की प्रतिमा को देवी भक्त शक्ति के रूप में पूंजते चले आ रहे हैं।
पूर्व में निंद्रासन अवस्था में थी माता
मान्यताओं और किदवंतियों के अनुसार सदियों पूर्व यह देवी स्थल सागौन के हरे भरे वनों से आच्छादित का था। प्राकृतिक माहौल में यहां देवी की प्रतिमा गुफा के अंदर लकड़ी से बने झूले में निंद्रासन में विद्यमान थी। कालांतर में लोगों को इस देवी के स्थान के बारे में पता चला तो जन सहयोग से इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कर झूले वाली माता की मूर्ति को उसी अवस्था में झूले में रखकर मंदिर में स्थापित कर पूजन कार्य किया जाता रहा है।
हजारों लोग करते हैं दर्शन
ग्राम सरपंच प्रधुम्मन उईके ने बताया कि झूले में विराजित देवी को इस स्थान पर झूले वाली माता के नाम से पुकारा जाता है। माता का आशीर्वाद पाने हजारों श्रद्धालु प्रतिवर्ष इस स्थान पर पहुंचकर झूले वाली माता के दर्शन कर अपने जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्ति पाते हैं। नवरात्र में यहाँ लोगों के प्राकृतिक देवी स्थान पर पहुंचने का सिलसिला जारी रहता है। सदियों से चली आ रही परंपरा अनुसार अष्टमी के दिन यहां पुजारी द्वारा देवी की प्रतिमा को स्नान कराकर देवी का नया सिंगार किया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसके बारे में कोई नहीं जानता।
तेन्दू के वृक्ष की लकड़ी से बनी है देवी की प्रतिमा। हरदू में स्थित झूलेवाली माता के प्रकट होने का इतिहास सदियों पुराना है। जानकर बताते है कि सालो पहले इस स्थान पर लकड़ी से निर्मित मंदिर बना हुआ था। झूलेवाली माता की प्रतिमा जगंल में पाये जाने वाले तेन्दू के वृक्ष की लकड़ी से निर्मित है। ग्रामीणो के अनुसार सदियों पहले यह स्थान घने जंगल में मौजूद था जहाँ पर झूलेवाली माता स्वत: ही तेन्दू के वृक्ष से प्रकट हुई थी। देवी का यह स्थान आज भी हरे-भरे वृक्षो से अच्छादित है।
वनराज लगाते हैं हाजरी
मंदिर के पुजारी के अनुसार प्रतिवर्ष अमावस्या और पूर्णिमा पर इस देवीय स्थल पर स्वयं वनराज आकर झूलेवाली माता के दरबार में हाजिरी लगाते है। इसका प्रमाण नवीन निर्माणाधीन मंदिर के निर्माण के लिए बनाई जा रही रही कच्ची इटों पर शेर के पंजो के निशान देखकर समझा जा सकता है। ग्रामीणों के मुताबिक मंदिर के निर्माण के लिए ईंटे बनाई जा रही थी। कच्ची ईंटो पर सुबह वनराज के पंजों को देखकर ग्रामीण हैरान रह गये। कच्ची ईंटो को पकाकर आज भी पंजे के निशानों को सुरक्षित रखा गया है।
मंदिर से जुड़े चमत्कार
ग्रामीणो के अनुसार पीढ़ी दर पीढ़ी ग्रामीण इस स्थान पर झूलेवाली माता का पूजन करते चले आ रहे है। पंचमी और अष्टमी के दिन धान से बने काजल को माता की आंखों में लगाकर नया श्रृंगार किया जाता है। ग्राम सरंपच प्रधुमन उइके के अनुसार जिस व्यक्ति की पूजा से माता प्रसन्न होती है उसे झूलेवाली माता को झूला झूलाने की आवश्कता नहीं पड़ती बल्कि स्वयं ही निद्रासन की स्थिति में झूले में विराजमान माता का झूला स्वत: ही चालू हो जाता है।
तीन प्रहर की होती है आरती
झूलेवाली माता के दरबार मे शारदीय नवरात्र एंव चैत्र नवरात्र एवं अस्विनी माह एवं माघ पक्ष की नवरात्र मे तीन प्रहर की आरती की जाती है। सभवत: यह स्थान देश का एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ आध्यशक्ति प्राकृतिक स्वरूप मे प्रकृति से निर्मित होकर तेन्दू की लकड़ी से बनी प्रतिमा मे झूले मे निद्रासन की स्थिति मे विराजमान है। जो स्वयं ही किसी चमत्मकार से कम नहीं है। सनातन हिन्दू धर्म में पत्थर से बनी प्रतिमाओ का पूजन किया जाता है। लेकिन झ्स स्थान पर पर सतपुड़ा के जंगलों में पाये जाने वाले तेन्दू के वृक्ष की लकड़ी से झूलेवाली माता की प्रतिमा निर्मित होना किसी रहस्य से कम नहीं है। सादियो से इस आदिवासी अंचल में श्रदालु झूलेवाली माता को पूर्ण शिद्धत आस्था से पूजते चले आ रहे है। झ्स स्थान पर दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचकर झूले में विराजित झूले वाली माता के दर्शन कर अपनी मुश्किलो ंको हल करते है। इस स्थान पर झूले में निन्द्रासन की स्थिति में मौजूद प्रतिमा का बिना किसी सहारे झूला झूलना भी अपने आप में चमत्कार है।
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