अब अन्य राज्य भी ले रहे सीख
The Gamechanger: भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने हरियाली और जल संरक्षण को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देने के लिए एक खास तकनीक विकसित की है—सिपरी सॉफ्टवेयर (Software for Identification and Planning of Rural Infrastructure – SIPRI)। यह सॉफ्टवेयर अब हर पौधारोपण और जल संरक्षण परियोजना की गुणवत्ता और उपयुक्तता तय कर रहा है। इस टेक्नोलॉजी के सफल उपयोग के चलते बिहार, महाराष्ट्र जैसे राज्य पहले ही मध्यप्रदेश का दौरा कर चुके हैं, जबकि राजस्थान सहित कई अन्य राज्य भी इसका अध्ययन करने की तैयारी में हैं।
💻 1 हजार करोड़ की परियोजनाओं को SIPRI से ‘OK’ मिलना जरूरी
मध्यप्रदेश सरकार ने स्पष्ट किया है कि अब से कोई भी पौधारोपण या जल संरचना संबंधी परियोजना तब तक शुरू नहीं की जाएगी, जब तक सिपरी सॉफ्टवेयर से ‘OK रिपोर्ट’ नहीं मिल जाती। आगामी 15 अगस्त से ‘एक बगिया मां के नाम’ अभियान के तहत सरकार 30 हजार से अधिक स्व-सहायता समूह की महिलाओं की निजी भूमि पर 30 लाख फलदार पौधे रोपेगी। इस पर 1000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
🛰️ सैटेलाइट डेटा से तय होगा स्थान
सिपरी सॉफ्टवेयर में:
- सैटेलाइट मैपिंग,
- जमीन की प्रकृति (एग्रीकल्चर/फॉरेस्ट लैंड),
- मिट्टी की किस्म,
- लीनियामेंट,
- जल निकासी जैसी भौगोलिक जानकारी को एकीकृत किया गया है।
एक क्लिक में यह सिस्टम यह सुझाव दे देता है कि यह भूमि किस योजना के लिए उपयुक्त है—पौधारोपण, तालाब, सड़क या अन्य निर्माण।
👨💼 विशेषज्ञों की राय
मनरेगा आयुक्त और वाटरशेड मिशन निदेशक अवि प्रसाद ने बताया कि:
“सिपरी सॉफ्टवेयर से अब तक प्रदेश में 79,815 खेत तालाब, 1,254 अमृत सरोवर और 1 लाख से ज्यादा कूप रिचार्ज पिट चिन्हित किए जा चुके हैं। इसकी सटीकता से गुणवत्तापूर्ण संरचनाएं बन सकी हैं।”
सामाजिक कार्यकर्ता भास्कर सिंह बघेल ने कहा:
“यह टेक्नोलॉजी ग्रामीण विकास में क्रांति ला सकती है। जियो टैगिंग पहले से मौजूद थी, लेकिन सिपरी से रिसोर्स मैपिंग में अत्यधिक सटीकता आ गई है।”
🧩 सिपरी कैसे काम करता है?
- पंचायत/मनरेगा विभाग के काम शुरू करने से पहले सिपरी से लोकेशन स्कैनिंग होती है।
- जमीन के नक्शे, खसरे और भू-प्राकृतिक डेटा को मिलाकर सॉफ्टवेयर खुद तय करता है कि वह जगह किस योजना के लिए सबसे उपयुक्त है।
- इससे फंड का दुरुपयोग, बेजान पौधारोपण, और अप्रभावी संरचनाओं की गुंजाइश खत्म हो जाती है।
🔄 राज्यों के लिए रोल मॉडल बना मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन और इसरो की तकनीकी मदद से तैयार यह सॉफ्टवेयर अब राष्ट्रीय मॉडल बनता जा रहा है। बिहार और महाराष्ट्र की टीम ने इसका अध्ययन किया है, जबकि राजस्थान, उत्तरप्रदेश, और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की टीमें भी दौरे की योजना में हैं।
साभार…
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