कोर्ट उठने तक थी सजा पर बर्खास्त हुआ था शिक्षक
Against punishment: जबलपुर(ई-न्यूज)। कोर्ट उठने तक की सजा मिलने के बाद बैतूल के शिक्षक को बर्खास्त कर दिया था। लेकिन शिक्षक ने हार नहीं मानी और 42 साल कानूनी लड़ाई लड़ी। इसका परिणाम यह हुआ कि 86 साल की उम्र में हाईकोर्ट ने उन्हें बड़ी राहत प्रदान की है। इस दौरान उन्हें बर्खास्तगी, सामाजिक उपेक्षा और आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में रहने वाले 86 साल के मानकराम सूर्यवंशी को हाईकोर्ट से वह राहत मिली है, जिसकी उम्मीद में उन्होंने चार दशकों तक अदालतों के चक्कर काटे।
बर्खास्त कर रोक दी थी पेंशन
1983 में लगे गंभीर आरोपों के बाद न सिर्फ उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया गया, बल्कि पेंशन तक रोक दी गई। अब जबकि हाईकोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट दे दी है, वे बिना नोटिस बर्खास्तगी को चुनौती देने शिक्षा विभाग के खिलाफ याचिका दायर करने जा रहे हैं। शासकीय स्कूल रतेड़ा, बैतूल में पदस्थ मानकराम की नौकरी 1972 में लगी थी। वे बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ पोस्ट ऑफिस में एजेंट के रूप में भी काम करते थे, जिसमें उन्हें कमीशन मिलता था। डाकघर दूर होने के कारण मानकराम ग्रामीणों से पैसे लेकर सप्ताह में एक दिन पोस्ट ऑफिस में जमा कर देते थे।
गबन का लगाया था आरोप
1984 में रतेड़ा गांव के किसान कन्हैया साहू ने 3,596 रुपए जमा करने के लिए दिए। दो दिन बाद अचानक किसान कन्हैया को पैसों की आवश्यकता पड़ी, तो वे डाकघर में पैसा निकालने पहुंचे, जहां पता चला कि उनका पैसा जमा नहीं हुआ है। इसकी शिकायत उन्होंने थाने में कर दी, जिसकी जानकारी मानकराम को नहीं थी। बैतूल पुलिस ने मानकराम के खिलाफ आईपीसी की धारा 409 के तहत मामला दर्ज किया। 28 जनवरी 1993 को केस की सुनवाई सेशन कोर्ट में हुई, जहां कोर्ट ने उन्हें कोर्ट उठने तक की सजा सुनाई। मानकराम ने इस आदेश को एडीजे कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सितंबर 2000 में एडीजे कोर्ट ने भी सजा को यथावत रखा।
2000 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में चैलेंज किया
बैतूल सेशन और एडीजी कोर्ट से कोर्ट उठने तक की सजा को मानकराम ने नहीं माना और 2000 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में चैलेंज किया। 2025 में मानकराम की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील मोहन शर्मा ने कोर्ट को बताया कि बिना किसी आधार के दोषी ठहराया गया, क्योंकि आवेदक को दोषी ठहराने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री या सबूत नहीं था। वकील द्वारा यह तर्क दिया गया है कि ट्रायल कोर्ट ने आवेदक को केवल इस आधार पर दोषी ठहराया है कि उन्होंने डाकघर के लिए मिली राशि को पासबुक और रजिस्ट्रार में चढ़ाया नहीं था। अधिवक्ता मोहन शर्मा ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता टीचर थे, उनकी आपराधिक मनोस्थिति नहीं थी। ट्रायल कोर्ट का फैसले सही नहीं है।
एक साथ जमा करते थे पोस्ट ऑफिस में रुपए
मानकराम सप्ताह भर ग्राहकों से रुपए एकत्रित करते और फिर हफ्ते के अंत में शनिवार को जमा कर देते थे। किसान कन्हैया साहू ने मंगलवार को मानकराम को पैसे दिए और फिर गुरुवार को जब रुपए निकालने पहुंचे तो खाते में 3596 रुपए की एंट्री नहीं थी, जिसके चलते उन्होंने कोतवाली थाने में मानकराम के खिलाफ गबन की शिकायत दर्ज करवा दी, इधर हर बार की तरह सप्ताह के अंत में शनिवार को मानकराम ने पूरे पैसे जमा कर दिए, पर तब तक पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी थी।
एफआईआर हुई तो नौकरी से निकाल दिया
पुलिस में एफआईआर दर्ज होते ही शिक्षा विभाग ने बिना जांच के ही कोर्ट की सजा को आधार मानते हुए 1986 में मानकराम को प्राथमिक शिक्षक के पद से बर्खास्त कर दिया। उस समय मानकराम की उम्र लगभग 44 वर्ष थी और उनके पास 15 साल की नौकरी का अनुभव था। वे एक ऐसे अपराध की सजा भुगत रहे थे, जो उन्होंने किया ही नहीं था। नौकरी जाने के बाद उनका पोस्ट ऑफिस का एजेंट का काम भी बंद हो गया। शिक्षा विभाग ने न केवल उन्हें बर्खास्त किया, बल्कि उन्हें पेंशन भी नहीं दी।
23 साल हाईकोर्ट में मामला रहा पेंडिंग
बैतूल निवासी मानकराम ने जिला कोर्ट के आदेश को साल 2000 में हाईकोर्ट में चैलेंज किया था, तब से लेकर 2023 तक यह मामला लंबित रहा। 2023 में एडवोकेट मोहन शर्मा ने मानकराम के केस की एक बार फिर पैरवी शुरू की। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस एमएस भट्टी ने निचली अदालतों के सभी आदेशों को खारिज करते हुए मानकराम सूर्यवंशी को दोष मुक्त कर दिया है।
शिक्षा विभाग के खिलाफ दायर होगी याचिका
मानकराम के एडवोकेट मोहन शर्मा का कहना है कि 42 साल तक उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ी, जिसमें उन्हें जीत मिली है। शिक्षा विभाग ने याचिकाकर्ता को गलत तर्क के साथ नौकरी से अलग करते हुए उनका फंड, पेंशन और ग्रेज्युटी रोक दी थी। लिहाजा अब मानकराम के पक्ष में जब हाईकोर्ट का फैसला आया है, तो शिक्षा विभाग से वो पूरा कॉम्पेनसेशन मांगेंगे।
साभार …
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