Cooking: खंडवा। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर खंडवा स्थित दादाजी धूनीवाले दरबार में आस्था और सेवा का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है। यहां देशभर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं, जिनके स्वागत में पूरा शहर ‘अतिथि देवो भव:’ की भावना से समर्पित नजर आ रहा है। भक्तों की सेवा के लिए 500 से अधिक भंडारों में 56 से अधिक व्यंजन परोसे जा रहे हैं — और यह सब पूरी तरह निःशुल्क।
भंडारे की शुरुआत एक घटना से हुई थी प्रेरित

यह परंपरा आज से 34 साल पहले, वर्ष 1991 में एक भावुक घटना के बाद शुरू हुई थी। एक भक्त के पास होटल में भोजन के लिए पैसे नहीं थे, और उसे वहां अपमानित किया गया। यह देखकर स्थानीय श्रद्धालुओं ने अगले वर्ष से भंडारे की शुरुआत की। तब से यह परंपरा इतनी व्यापक हो चुकी है कि आज यहां हर गली और चौक पर सेवा शिविर और भंडारे दिखाई देते हैं।
गणेश गोशाला समिति से लेकर यूथ क्लब तक कर रहे सेवा
- गणेश गोशाला समिति के रामचंद्र मौर्य बताते हैं कि खंडवा के भंडारे 1992 के उज्जैन कुंभ से प्रेरित होकर शुरू हुए थे।
- कमल यूथ क्लब जैसे संगठन, जो पहले केवल फरियाली खिचड़ी बांटते थे, अब पूरे भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं। क्लब में दूसरी पीढ़ी के सदस्य भी सेवा में जुटे हैं।
- दादाजी सेवा मंडली 28 साल से लगातार स्टॉल लगा रही है — पोहे से शुरुआत कर आज मिठाइयों तक का वितरण हो रहा है।
सरकारी विभाग भी पीछे नहीं
- आरटीओ, एनएचएआई, और कलेक्ट्रेट जैसे विभाग भी अपने-अपने स्टॉल लगाकर सेवा में शामिल हैं।
- विपणन संघ द्वारा पूड़ी-सब्जी वितरित की जा रही है।
स्थानीय मोहल्लों और ग्रुप्स की अनूठी पहल
- आनंद नगर में मोहल्ले के ग्रुप द्वारा जलेबी और भजिए परोसे जा रहे हैं।
- स्कूल, कॉलेज, और कोचिंग संस्थान भी चाय और जूस वितरण कर रहे हैं।
मंदिर प्रांगण में भी दो वक्त का लंगर
दादाजी मंदिर परिसर में पिछले तीन वर्षों से लंगर की व्यवस्था की जा रही है। सेवादारों के अनुसार, यहां खिचड़ा, कढ़ी और रोटी बैठाकर परोसी जाती है। इस बार साढ़े 12 क्विंटल बेसन से बनी बूंदी, 140 डिब्बे घी, और 25 क्विंटल शकर का उपयोग किया गया।
चिकित्सा मित्र ग्रुप का मानव सेवा भाव
‘चिकित्सा मित्र’ नामक डॉक्टरों के एक समूह ने ग्रामीण बच्चों को खिलौने, स्टेशनरी, स्कूल बैग और महिलाओं को साड़ियां वितरित कर सेवा की मिसाल पेश की है।
दादा दरबार – सेवा, समर्पण और सरलता का उदाहरण
सीनियर पत्रकार मनीष जैन बताते हैं कि दादाजी दरबार आज भी बाजारवाद से अछूता है। यहां प्रसाद बिकता नहीं, पंडे-पुजारी नहीं, और चंदा मांगा नहीं जाता। भक्त स्वयं हवन करते हैं, समाधि को स्पर्श कर सकते हैं। मंदिर ट्रस्ट आज भी 1935 में तय किए गए सिद्धांतों के अनुसार संचालन करता है।
साभार…
Leave a comment