सेवा और रोजगार की मिसाल
Innovation: मंदसौर। गाय केवल पूज्य नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण रोजगार और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की अहम कड़ी बन रही है। यह सच जिले की तीन गोशालाएं — तितरोद, हांड्या बाग (सीतामऊ) और धुंधड़का — बखूबी साबित कर रही हैं। इन संस्थानों ने गौसेवा को केवल गोपालन तक सीमित न रखते हुए स्वरोजगार, जैविक खेती और पर्यावरण रक्षा से जोड़ा है। इन गोशालाओं ने नवाचार, सेवा और प्रबंधन के जरिये अपनी पहचान आत्मनिर्भर मॉडल के रूप में बनाई है। यह न केवल सैकड़ों गायों की सेवा कर रही हैं, बल्कि आमजनों को रोजगार और प्रशिक्षण भी दे रही हैं।
🧴 तितरोद गोशाला: गोबर और गोमूत्र से 60+ उत्पाद
तितरोद की गोशाला में गाय के गोबर और गोमूत्र से 60 से अधिक उत्पाद बनाए जा रहे हैं, जिनमें घड़ियां, मूर्तियां, फोटो फ्रेम, धूपबत्ती, पेंटिंग आदि शामिल हैं। इन नवाचारों के माध्यम से लोगों को स्वरोजगार से जोड़ा गया है। अब तक 15 राज्यों की संस्थाओं को यह तकनीक सिखाई जा चुकी है और 1000 से अधिक लोगों को नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया गया है। इस नवाचार से स्थानीय स्तर पर रोजगार और आय के नए स्रोत विकसित हो रहे हैं।
🌿 धुंधड़का गोशाला: जैविक खाद और ईको-फ्रेंडली मूर्तियों का निर्माण
अखिलानंद सरस्वती ग्रामीण गोशाला, धुंधड़का जैविक खाद तैयार कर रही है जिसकी सालाना बिक्री 2 लाख रुपए से अधिक की हो रही है। इसके अलावा यहां ईको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियां और गोमय उत्पाद भी बनाए जा रहे हैं। यह गोशाला 900 से ज्यादा गायों की देखरेख कर रही है और बीमार गायों के इलाज में होने वाले खर्च की पूर्ति भी इन्हीं उत्पादों की बिक्री से होती है। आत्मनिर्भर गोशालाओं में यह गोशाला जिले में शीर्ष स्थान रखती है।
🏥 हांड्या बाग गोशाला (सीतामऊ): बीमार गायों के लिए ICU सुविधा
सीतामऊ की हांड्या बाग गोशाला को बीते 7 वर्षों में हाईटेक रूप दिया गया है। यहां बीमार और घायल गायों के लिए ICU जैसी आधुनिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है। 100 किलोमीटर के दायरे से गंभीर रूप से बीमार गायों को एंबुलेंस द्वारा लाया जाता है और उनका उपचार यहीं किया जाता है। वर्तमान में 500 से अधिक गायों की सेवा की जा रही है। गोशाला जरूरतमंद महिलाओं को बच्चों के लिए नि:शुल्क दूध भी बांट रही है।
🤝 सेवा भावना से संचालित, स्वरोजगार और समाज सेवा का केंद्र
इन गोशालाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि गोशालाएं केवल पशु संरक्षण नहीं, बल्कि सामाजिक नवाचार और ग्रामीण उत्थान का केंद्र बन सकती हैं।
- प्रशिक्षित कर्मचारी,
- स्थानीय रोजगार,
- स्वच्छ ऊर्जा,
- और पर्यावरण हितैषी उत्पादों के साथ ये गोशालाएं आत्मनिर्भर भारत की नींव को और मजबूत कर रही हैं।
- साभार…
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