Reservation: नई दिल्ली | ओबीसी मामलों से जुड़ी संसदीय समिति ने केंद्र और राज्य सरकारों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, विश्वविद्यालयों तथा निजी क्षेत्र में कार्यरत अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के कर्मचारियों के लिए ‘क्रीमी लेयर’ की समान आय सीमा तय करने की सिफारिश की है। अब फैसला केंद्र सरकार को लेना है कि इस पर आगे क्या कदम उठाए जाएं। माना जा रहा है कि अगर सिफारिश पर अमल होता है, तो यह आरक्षण व्यवस्था में बड़ी पहल होगी।
वर्तमान में ‘क्रीमी लेयर’ श्रेणी में शीर्ष सरकारी पदों पर कार्यरत ओबीसी अधिकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के वरिष्ठ कर्मचारी, सशस्त्र बल अधिकारियों, व्यवसायियों, पेशेवरों और संपत्ति व आय की तय सीमा से ऊपर कमाने वाले लोग शामिल हैं। 2017 में कुछ पीएसयू के लिए समान आय सीमा लागू की गई थी, लेकिन निजी क्षेत्र, विश्वविद्यालयों और राज्य सरकार के कई निकायों में यह प्रक्रिया लंबित रही।
मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत केंद्र सरकार की नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में नॉन-क्रीमी लेयर ओबीसी को 27% आरक्षण मिलता है। विभिन्न राज्यों में यह प्रतिशत अलग-अलग है। समिति की अध्यक्षता भाजपा सांसद गणेश सिंह कर रहे हैं। उनकी रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में क्रीमी लेयर की आय सीमा 6.5 लाख से बढ़ाकर आठ लाख रुपये वार्षिक की गई थी और नियमों के अनुसार इसकी समीक्षा हर तीन साल में होनी चाहिए।
प्रस्ताव में प्रोफेसरों और विश्वविद्यालयी शिक्षण कर्मचारियों को भी क्रीमी लेयर में शामिल करने की बात कही गई है, क्योंकि उनका वेतनमान आमतौर पर 10 लाख रुपये वार्षिक या उससे अधिक होता है। इसका अर्थ है कि उनके बच्चों को ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
क्रीमी लेयर की अवधारणा 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद लागू हुई थी, ताकि ओबीसी के अधिक विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जा सके। वर्तमान में यह सीमा आठ लाख रुपये वार्षिक है, जो 2017 से लागू है।
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