Betul News: चिचोली: आनंद राठौर/ बैतूल की सुरम्य वादियों में स्थित मां चंडी का दरबार न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि चमत्कारों और रहस्यों का भी अद्वितीय केंद्र माना जाता है। करीब 1400 वर्ष पुराने इस मंदिर की स्वयंभू प्रतिमाएं आज भी भक्तों को आत्मिक शांति और अटूट विश्वास का अनुभव कराती हैं।
भक्तों की मान्यता
मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थनाएं कभी व्यर्थ नहीं जातीं। हर रविवार और बुधवार को हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर मां चंडी के दरबार पहुंचते हैं। माता का चंडी रूप भक्तों के लिए रक्षक और दुष्टों के संहारक के रूप में पूजित है।
गोंड राजा इल की कुलदेवी
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि इस क्षेत्र पर गोंड राजा इल का शासन था और मां चंडी उनकी कुलदेवी थीं। मंदिर तक जाने के लिए राजा ने एक गुप्त सुरंग भी बनवाई थी। आज भी मंदिर परिसर में बने दो देवल कमरे लोगों को रहस्यमय अनुभव कराते हैं। कहा जाता है कि एक कमरे में आवाज असामान्य रूप से गूंजती है, जबकि दूसरे में सामान्य रहती है।
प्रतिमा स्थानांतरित करने पर आईं विपत्तियां
लोककथाओं के अनुसार, जब भी देवी की प्रतिमा को स्थानांतरित करने का प्रयास हुआ, तो लगातार विपत्तियां आने लगीं। अंततः प्रतिमा को पुनः यथास्थान स्थापित कर दिया गया। तभी से यह दरबार चमत्कारी स्थल माना जाने लगा।
खंडहर में बदलता किला और देवल
मां चंडी का दरबार आज भी आस्था का प्रमुख केंद्र है, लेकिन इसके साथ जुड़े किले और देवल की स्थिति जर्जर हो चुकी है। दीवारों और गुंबदों में दरारें, टूटे हुए स्तंभ और उगे पेड़-पौधे इन्हें खंडहर में बदलते जा रहे हैं।
स्थानीय आदिवासी समाज और संगठन लगातार शासन-प्रशासन से जीर्णोद्धार की मांग कर रहे हैं, ताकि इस ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित किया जा सके।
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