सरकार ने आपराधिक कार्रवाई की चेतावनी दी
Dangerous: भोपाल। वन्य क्षेत्र में गोंद निकालने के नाम पर चल रहे अवैध कामकाज का भंडाफोड़ हुआ है, जहां गोंद माफिया धावड़ा और सलाई जैसे पेड़ों में इथेफोन रसायन के इंजेक्शन लगाकर अनैतिक और अप्राकृतिक तरीके से गोंद निकाल रहे हैं। इस प्रक्रिया से पेड़ पर्यावरणीय चोट खा रहे हैं और पांच-छह साल में वे नष्ट होने लगते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे गोंद का सेवन स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक हो सकता है, विशेषकर प्रसव-सम्बंधी महिलाओं के लिए।
वन विभाग के अनुसार गोंद निकालने की अवधि सामान्यतः नवंबर से जून तक रहती है। पिछले वर्ष तीन जिलों — बुरहानपुर, खंडवा और देवास — के कुछ वनमंडलों में शर्तों के साथ गोंद निकालने की अनुमति दी गई थी, पर अन्य जिलों में प्रतिबंध यथावत रखा गया है। यह निर्णय धार जिले के विधायक द्वारा उठाए गए प्रश्न के बाद लिया गया था।
वनों में मिलने वाला गोंद कई औद्योगिक और पारंपरिक उपयोगों में आता है—पेंट, वार्निश, फार्मास्यूटिकल, अगरबत्ती, खाद्य और टेक्सटाइल उद्योग सहित पूजन व हवन सामग्री। इसी मांग के कारण तस्करी और अवैध निकालने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है।
इथेफोन क्या है: इथेफोन एक जैव–रासायनिक पदार्थ है जिसका उपयोग फलों के पकने, फूल आने में तेजी और लेटेक्स उत्पादन बढ़ाने के काम में होता है; मगर पेड़ों में इंजेक्शन कर के गोंद निकालना गैरकानूनी और पेड़ों के लिए घातक है।
वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (संरक्षण शाखा) विभाष ठाकुर ने स्पष्ट कहा, “इथेफोन इंजेक्शन लगाकर गोंद निकालना आपराधिक कृत्य है — अगर ऐसा हो रहा है तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”
अधिकारियों का कहना है कि गोंद निकालने के काम में पारदर्शिता, नियमों का कड़ाई से पालन और स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी, ताकि जैविक संसाधनों का संरक्षण हो सके और अवैध गतिविधियों पर लगाम लगे।
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