Amazing confluence: दमोह। मध्यप्रदेश के दमोह जिले में स्थित जागेश्वर धाम बांदकपुर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि अपनी ऐतिहासिकता, परंपराओं और रहस्यमय शिवलिंग के कारण यह स्थान हर दिन हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। बीना–कटनी रेलमार्ग पर बसे इस गांव में भगवान शिव का स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है, जिसे सिद्धपीठ के रूप में पूजा जाता है।
⛏️ 30 फीट खुदाई के बाद भी नहीं मिला शिवलिंग का अंत
स्थानीय किंवदंती के अनुसार, 17वीं शताब्दी में मराठा राज्य के दीवान बालाजी राव चांदोरकर जब रथ यात्रा के दौरान बांदकपुर पहुंचे, तो उन्हें वर्तमान इमरती कुंड में स्नान करने के बाद भगवान शिव के दर्शन हुए। भगवान ने संकेत दिया कि वटवृक्ष के पास खुदाई की जाए। जब खुदाई शुरू हुई, तो एक विशालकाय काले भूरे पत्थर का शिवलिंग मिला, जिसकी गहराई जानने के लिए 30 फीट तक खुदाई की गई, लेकिन शिवलिंग का अंत नहीं मिला। इसके बाद उसी स्थल पर मंदिर का निर्माण कराया गया।
🙏 अद्वितीय शिवलिंग: हाथों में नहीं समाता
जमीन की सतह से नीचे स्थित यह शिवलिंग इतना विशाल है कि श्रद्धालुओं के दोनों हाथों में समाता नहीं। मंदिर का गर्भगृह भी आज मूल नींव से नीचे है, जो इसकी प्राचीनता और पवित्रता को दर्शाता है।
पूर्व दिशा में मंदिर का मुख्य द्वार है, जबकि पश्चिम में लगभग 100 फीट की दूरी पर माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित है, जिनकी दृष्टि सीधे भगवान शिव पर पड़ती है। इनके मध्य में विशाल नंदी मठ स्थित है, जहां से दोनों प्रतिमाएं स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। पास ही स्थित इमरती बावली (अमृत कुंड) में विभिन्न तीर्थों से लाया गया पवित्र जल एकत्र किया जाता है, जिसे श्रद्धालु गंगाजल समझकर घर ले जाते हैं।
✋ हल्दी के हाथ लगाने की अनूठी परंपरा
इस मंदिर की एक खास परंपरा है — दीवार पर हल्दी से हाथ लगाना। श्रद्धालु जब कोई मनोकामना करते हैं तो हल्दी से बायां हाथ लगाते हैं, और इच्छा पूरी होने पर आकर दायां हाथ लगाते हैं। यह परंपरा जागेश्वर धाम की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान बन गई है।
🕉️ महाशिवरात्रि पर ध्वज मिलन चमत्कार
महाशिवरात्रि पर मंदिर में अपार भीड़ उमड़ती है। इस दिन सवा लाख कांवड़ें भगवान को अर्पित की जाती हैं। मान्यता है कि इसी दिन मंदिर पर स्थित शिव और पार्वती ध्वज आपस में मिल जाते हैं, जिसे भक्त भोलेनाथ का चमत्कार मानते हैं।
🛕 अन्य मंदिर और स्थायी यज्ञ मंडप
मुख्य मंदिर परिसर में भैरवनाथ, राम लक्ष्मण जानकी, हनुमान, व सत्यनारायण मंदिर भी हैं। यहां नियमित यज्ञ आयोजित होता है। इसके लिए 1955 में जयपुर से कारीगर बुलाकर स्थायी यज्ञ मंडप तैयार कराया गया था।
🏛️ ट्रस्ट द्वारा होती है व्यवस्था
1 फरवरी 1932 को जबलपुर न्यायालय ने मंदिर के संचालन हेतु 21 सदस्यीय ट्रस्ट का गठन किया। 6 नवंबर 1933 को यह ट्रस्ट पंजीकृत स्वामित्व संस्था बना। ट्रस्ट में दमोह-बांदकपुर क्षेत्र, हिंदू महासभा (जबलपुर व सागर) और चांदोरकर परिवार के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। पुजारी वर्ग को पैतृक अधिकार प्राप्त हैं। सत्यनारायण कथा, कांवड़ पूजन, मुंडन संस्कार सहित अनेक धार्मिक कार्य ट्रस्ट द्वारा संपन्न कराए जाते हैं।
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