Angry: भोपाल: मध्यप्रदेश कांग्रेस में हाल ही में घोषित हुए 71 जिला अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर पार्टी में विरोध और नाराजगी थमने का नाम नहीं ले रही है। अब इस मसले पर कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी असंतोष जताया है।
राहुल गांधी ने सोमवार को दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में ‘संगठन सृजन अभियान’ के तहत झारखंड, ओडिशा, पंजाब और उत्तराखंड के जिला अध्यक्षों के चयन के लिए बनाए गए पर्यवेक्षकों की बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि,
👉 “जिला अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर सबसे ज्यादा शिकायतें मध्यप्रदेश से आई हैं। जो गलतियां यहां हुईं, वे अन्य राज्यों में दोहराई नहीं जानी चाहिए।”
जीतू पटवारी का बचाव
राहुल की नाराजगी पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि शिकायतें आई हैं लेकिन इन्हें सुधार के नजरिए से देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में हर 6 महीने में रिव्यू का प्रावधान है, जिसमें पदाधिकारियों के काम का आकलन होगा।
पटवारी ने कहा—
👉 “हम सुधारवादी लोग हैं, बीजेपी जैसे डिक्टेटर नहीं हैं। पार्टी एक परिवार है और सबकी भावनाओं का सम्मान करना हमारा दायित्व है।”
सबसे ज्यादा विरोध मध्यप्रदेश से
16 अगस्त को मध्यप्रदेश में जिलाध्यक्षों की घोषणा हुई थी। इसके बाद से भोपाल से दिल्ली तक प्रदर्शन और विरोध शुरू हो गए। आरोप यह भी लगे कि दूसरे जिलों से नेताओं को लाकर जिलाध्यक्ष बनाया गया, जिससे स्थानीय कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ा।
विरोध के प्रमुख मामले:
- भोपाल: शहर अध्यक्ष प्रवीण सक्सेना की दोबारा नियुक्ति पर पूर्व अध्यक्ष प्रदीप सक्सेना मोनू ने विरोध किया और यहां तक कि राहुल गांधी को खून से खत लिखा।
- इंदौर ग्रामीण: आगर के पूर्व विधायक विपिन वानखेड़े को अध्यक्ष बनाए जाने पर देपालपुर से दिल्ली तक प्रदर्शन।
- डिंडोरी: ओंकार सिंह मरकाम की नियुक्ति पर पुतला दहन और आदिवासी नेतृत्व की अनदेखी का आरोप।
- सतना (शहर व ग्रामीण): सिद्धार्थ कुशवाह की नियुक्ति पर एक व्यक्ति, एक पद का सवाल।
- बुरहानपुर: जिला प्रवक्ता हेमंत पाटिल ने इस्तीफा दे दिया।
- देवास (ग्रामीण): जीतू पटवारी के करीबी गौतम गुर्जर ने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया।
आगे क्या?
राहुल गांधी के बयान ने साफ कर दिया है कि संगठनात्मक नियुक्तियों को लेकर मध्यप्रदेश कांग्रेस में असंतोष शीर्ष नेतृत्व तक पहुंच गया है। अब देखना यह होगा कि 6 महीने बाद होने वाले रिव्यू में कितने जिलाध्यक्ष अपनी कुर्सी बचा पाते हैं।
साभार…
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