Dussehra: छिंदवाड़ा: छिंदवाड़ा जिले के जमुनिया गांव में नवरात्रि का पर्व बाकी जगहों से बिल्कुल अलग अंदाज में मनाया जाता है। जहां देशभर में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना और दशहरे पर रावण दहन होता है, वहीं इस गांव में पिछले 20 सालों से रावण की मूर्ति स्थापित कर 10 दिनों तक उसकी पूजा की जाती है और दशहरा आने पर विधि-विधान से रावण का विसर्जन किया जाता है।
पूर्वज मानकर करते हैं रावण की आराधना
आदिवासी समाज के लोग रावण को अपना पूर्वज और प्रकृति का पुजारी मानते हैं। उनका कहना है कि वे रामायण वाले रावण की नहीं, बल्कि शिवभक्त और कोयावंशी रावण की पूजा करते हैं। आदिवासी युवा सुमित सल्लाम बताते हैं — “पूर्वजों की पूजा हमारा धर्म है, इसलिए गांव में हर साल रावण की स्थापना और पूजा की जाती है।”
आरती नहीं, होती है ‘सुमरनी’
जमुनिया ही नहीं बल्कि मेघासिवनी और आसपास के कई गांवों में भी रावण की पूजा होती है। यहां परंपरा के अनुसार मां दुर्गा के पंडालों में आरती होती है, जबकि रावण की मूर्ति के सामने ‘सुमरनी’ कही जाती है।
दो दशकों से कायम परंपरा
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि यह परंपरा बीते दो दशकों से चल रही है। दशहरे पर अन्य जगहों की तरह रावण दहन करने के बजाय यहां श्रद्धालु दो रावण मूर्तियों का जल-विसर्जन करते हैं।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का समर्थन
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के जिला अध्यक्ष देवरावेन भलावी का कहना है — “रावण कोयावंशी थे, उनका जन्म गुफा में हुआ था और वे आदिवासी समाज के पूर्वज हैं। इसलिए रावण दहन करने से हमारी भावनाएं आहत होती हैं।”
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