स्वस्थ्य होने में मरीज को आया डेढ़ लाख रुपए खर्च
Kidney-Liver: इंदौर(ई-न्यूज)। नानवेज खाने के शौकीन एक मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव को मछली का पित्त खाना महंगा पड़ गया। इससे उनके लीवर और किडनी दोनों डैमेज हो गए थे। पूरे शरीर में टॉक्सिन फैल गया था जिसका उपचार कराने में उन्हें करीब डेढ़ लाख रुपए का खर्च आया है। उपचार डॉ. अरोरा ने किया।
शुरू हो गए थे उल्टी-दस्त
इंदौर में मछली खाने के बाद मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव दुर्गादास सुनानिया (42) की तबीयत बिगड़ गई। उल्टियां और लूज मोशन होने लगे। ब्लड प्रेशर गिर गया। पूरे शरीर पर सूजन आ गई। 3 अलग-अलग अस्पतालों में दिखाने के बाद पता चला कि लिवर और किडनी डैमेज हो गए हैं। डॉक्टरों ने हाई डोज एंटीबायोटिक दिए। डायलिसिस की जरूरत पडऩे की बात कही। परेशान होकर परिजन उसे मेदांता अस्पताल लेकर पहुंचे। जहां चेकअप के बाद पता लगा कि मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव ने मछली के पित्त की थैली (गाल ब्लेडर) खा ली थी। जिससे शरीर में टॉक्सिन फैल गया। डॉक्टरों ने इसे दवाओं के जरिए बाहर निकाला। करीब डेढ़ महीने तक स्पेशल ट्रीटमेंट दिया। अब वह पूरी तरह स्वस्थ है।
पानी के साथ निगली थी पित्त की थैली
मेदांता अस्पताल में मेडिकल चेकअप के दौरान पता चला कि मरीज के लिवर एंजाइम्स खतरनाक रूप से 3000-4000 के स्तर तक पहुंच गए हैं। ये 15-20 तक होने चाहिए। क्रिएटिनिन की मात्रा भी 8-9 के स्तर पर है। इसे 1-2 तक होना चाहिए था। यूरिन भी काफी कम आ रहा था। नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. जय सिंह अरोरा ने इसका कारण जानने के लिए टेस्ट कराए। डॉ. अरोरा के पूछने पर दुर्गाप्रसाद ने बताया कि वह मछुआरा समाज से है। भोजन में अक्सर मछली बनती है। वह बाजार से खुद मछली लाता है। फिर साफ-सफाई कर खुद ही बनाता है। घटना वाले दिन भी ऐसा ही किया था। भोजन करने के बाद पानी पीया तो आभास हुआ कि मछली का कोई अंग पानी के साथ पेट में चला गया है। ध्यान आया कि जो पानी पीया था, उसमें मछली की पित्त की थैली हो सकती है।
पित्त की थैली में होता है सायरपरोल टॉक्सिन
डॉ. अरोरा ने कहा कि ैसे ही मरीज ने केस हिस्ट्री बताई, इलाज की दिशा मिल गई। सबसे पहले हैवी एंटीबायोटिक्स और मेडिसिन बंद कराईं। इन दवाओं से स्वास्थ्य में कोई सुधार होने की गुंजाइश नहीं थी क्योंकि दुर्गाप्रसाद को इंफेक्शन नहीं बल्कि पित्त की थैली के टॉक्सिन का असर था। डॉ. अरोरा ने बताया कि मछली की पित्त की थैली में सायरपरोल टॉक्सिन होता है। यह शरीर में पहुंचने पर लिवर और किडनी को तेजी से नुकसान पहुंचाता है। हालांकि, पित्त की थैली मल के साथ बाहर निकल जाती है, लेकिन इसका विष गंभीर असर डालता है। ऐसे केसों में अगर सही समय पर इलाज नहीं मिले तो मृत्यु की 100 प्रतिशत आशंका रहती है। यह समस्या समुद्री क्षेत्रों में आम होती है, लेकिन मध्य भारत में ऐसे मामले दुर्लभ हैं।
दवाइयों से किया सफल उपचार
डॉ. अरोरा ने कहा- दुर्गा प्रसाद को स्टेरॉयड और डायलिसिस की मदद से इलाज दिया गया। शुरुआती तीन डायलिसिस के बाद मरीज की हालत में सुधार दिखने लगा। बिना किसी सर्जरी, सही दवाइयों और लगातार मॉनिटरिंग से मरीज को बचा लिया गया। दुर्गाप्रसाद ने बताया कि मुझे 3 जनवरी को डिस्चार्ज कर दिया गया था। इलाज में करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च हुए। फिलहाल सिर्फ दो ही दवा चल रही हैं। मैं अब पूरी तरह स्वस्थ हूं। साभार…
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