नागा साधुओं की जीवनशैली और उनकी साधना
Naga Saints: प्रयागराज। नागा साधुओं की जिंदगी में रहस्यों और जिज्ञासाओं का बड़ा हिस्सा है। कुंभ मेले में अक्सर हजारों की संख्या में नागा संत नजर आते हैं, लेकिन मेला समाप्त होते ही उनका दर्शन नहीं होता। इनकी दिनचर्या, उद्देश्य और जीवनशैली को लेकर कई सवाल उठते रहते हैं। इन सवालों के जवाब देने के लिए नागा संत अर्जुन पुरी ने अपनी जीवन यात्रा साझा की।
नागा संत अर्जुन पुरी का जीवन
नागा संत अर्जुन पुरी ने बताया कि वह पाँच वर्ष की आयु से ही नागा संन्यासी हैं। बचपन में जब उन्हें यह ज्ञान हुआ, तो वे संतों की शरण में गए और यहीं से उनका जीवन एक साधना का रूप ले लिया। उन्होंने कहा कि उनके जीवन का पालन-पोषण ज्ञान, भक्ति, और वैराग्य के द्वारा हुआ है। नागा संत का कहना था कि उनका पूरा जीवन एक संत जीवन ही रहा है।
नागा संन्यासियों का उद्देश्य
नागा संत ने बताया कि उन्हें जूना अखाड़े की ओर से धर्म प्रचार का कार्य दिया जाता है। उनका मुख्य उद्देश्य सनातनी धर्म का प्रचार करना और इसे पूरी दुनिया में फैलाना है। वे भारत और अन्य देशों में जाकर सनातनी संस्कृति का प्रसार करते हैं।
कुंभ के बाद कहाँ जाते हैं नागा संत?
नागा संतों के लिए कुंभ और महाकुंभ के बाद उनकी गतिविधियाँ बदल जाती हैं। अर्जुन पुरी ने बताया कि वे ठंडे स्थानों पर जाते हैं क्योंकि उनका शरीर अत्यधिक ऊर्जा से भरपूर होता है, और गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाते। वे अक्सर हिमालय या हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले स्थानों पर रहते हैं, जहां ठंडक बनी रहती है। वहाँ वे गुफाओं में रहकर साधना करते हैं और जब कभी बड़े मेलों का आयोजन होता है, तो वे वहाँ भाग लेने पहुँच जाते हैं।
नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया
नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन होती है। अर्जुन पुरी ने बताया कि यह दीक्षा बचपन से ही दी जाती है और इस दौरान कठोर साधनाओं, तपस्या, ध्यान और पूजा-पाठ से गुजरना पड़ता है। उनका मानना था कि इस प्रक्रिया में लिंग मर्दन भी एक हिस्सा है, जिसे एक विशेष संस्कार माना जाता है। नागा संन्यासी का दिन सुबह तीन-साढ़े तीन बजे से शुरू होता है। वे स्नान के बाद जप, हवन और पठन-पाठन करते हैं।
नागा संन्यासियों को ठंड क्यों नहीं लगती?
नागा संन्यासी ने ठंड नहीं लगने की वजह बताते हुए कहा कि वे भभूति का उपयोग करते हैं, जिसे मंत्रों से अभिमंत्रित किया जाता है। यह भभूति उनके लिए विशेष कपड़े का काम करती है। साथ ही, वे जीवन को नियम और संयम के साथ जीते हैं, जो उनके शरीर में ऊर्जा और अग्नि को बनाए रखता है। इस कारण उनका शरीर अंदर से गर्म और मजबूत रहता है, जिससे वे मौसम की मार से बच पाते हैं।
नागा साधुओं का वास्तविक स्वरूप
अर्जुन पुरी ने इस मिथक को खारिज किया कि नागा साधु कठोर और डरावने होते हैं। उनका कहना था कि उनका हृदय मक्खन की तरह नरम होता है और वे बहुत दयावान होते हैं। उन्होंने समाज से अपील की कि लोग संतों की शरण में आएं और उनसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। उनका उद्देश्य केवल सनातन धर्म की सेवा और प्रचार करना है।
नागा संन्यासी अपनी जीवनशैली और उद्देश्य से एक अलग ही संसार का हिस्सा होते हैं। उनका जीवन साधना, तपस्या और समाज के कल्याण के लिए समर्पित है। उनकी जीवनशैली और सोच समाज के लिए एक प्रेरणा हो सकती है, जहां आत्मनिर्भरता, नियम और संयम से जीवन को जीने की सीख मिलती है।
source internet… साभार….
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