थमने की जगह बढ़ रही कांग्रेस में गुटबाजी
Political activity: बैतूल (सांध्य बैतूलवाणी)। नवनीत गर्ग
भारत के सबसे पुराने राजनैतिक दल कांग्रेस में गुटबाजी तो 140 पहले कांग्रेस के गठन के बाद ही शुरू हो गई थी। लेकिन धीरे-धीरे ये कम होने की जगह बढ़ती गई। और इन वर्षों में कांग्रेस का कई बार विभाजन तक हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि जो कांग्रेस देश के पहले आम चुनाव के बाद लगभग 40 वर्षों तक केंद्र में सत्ता में रही और देश के अधिकांश राज्यों में भी सत्तारूढ़ रही वह अब देश के मात्र 3 राज्यों में सिमट कर रह गई है। राजनैतिक समीक्षक इसका सबसे बड़ा कांग्रेस की गुटबाजी और एक परिवार द्वारा सक्षम नेतृत्व को उभरने ना देना है।
बैतूल जिला भी इससे अछूता नहीं
1991 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को फिर कभी जीत नसीब नहीं हुई। 1996, 1998, 1999, 2004, 2008, 2009, 2014, 2019 और 2024 में भाजपा ने जीत का परचम लहराया। इसी तरह 1993 के बाद कांग्रेस को हर विधानसभा चुनाव में इक्का-दुक्का विधानसभा सीट पर जीत हासिल हुई। 1998, 2003, 2008, 2013, 2018 और 2023 में हुए चुनाव में जिले की 32 सीटों में से मात्र 10 सीटों पर कांग्रेस जीती। 20 सीटों पर भाजपा और 2 सीटों पर निर्दलीय जीते। सहकारिता, नगरीय निकाय, पंचायत चुनाव में भी यही स्थिति बनी हुई है। इसके बावजूद जिले में कांग्रेसी एक-दूसरे को निपटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
दो जिलाध्यक्ष बनाना पड़ा था भारी
मई 2018 में कांग्रेस ने सुनील शर्मा को जिला कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था। तब श्री शर्मा कांग्रेस के प्रमुख गुट डागा एवं पांसे गुट को साथ लेकर चले और गुटबाजी कुछ कम हुई परिणाम स्वरूप 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लंबे समय बाद जिले की पांच में से चार सीट पर जीत हासिल हुई। लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने दो जिला अध्यक्ष कर दिए। सुनील शर्मा जिला शहर अध्यक्ष एवं हेमंत वागद्रे जिला ग्रामीण अध्यक्ष बने। इससे फायदे की जगह कांग्रेस नुकसान में रही। आपसी खींचातानी बढ़ी और 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पांचों सीट हार गई। दो अध्यक्षों के दौर में जिला स्तर पर कांग्रेस के जो भी प्रदर्शन, आयोजन हुए वे दोनों अध्यक्षों के समर्थक अलग-अलग गुटों में बंटकर करते रहे।
वागद्रे के दौर में डागा समर्थक रहे गायब
2023 के विधानसभा चुनाव के बाद हेमंत वागद्रे को एकमात्र कांग्रेस जिलाध्यक्ष बना दिया गया। इस दौरान निलय डागा बैतूल सीट से चुनाव हार गए थे और उनके समर्थक मान रहे थे कि उनके चुनाव में जिला कांग्रेस का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। विधानसभा चुनाव के बाद सरकार न बनने के बावजूद हेमंत वागद्रे एवं उनके सहयोगी सरकार के खिलाफ विभिन्न प्रदर्शन, आंदोलन और आयोजनों में सक्रिय रहे जिसमें उन्हें सुखदेव पांसे और उनके समर्थकों का भी पूर्ण सहयोग मिला। लेकिन इस दौरान पूर्व विधायक निलय डागा और उनके समर्थक इन आयोजनों में से अधिकांश आयोजनों में दूरी बनाकर चले।
पांसे-वागद्रे समर्थक नहीं दिख रहे आयोजनों में
अब निलय डागा स्वयं जिला कांग्रेस जिला अध्यक्ष बन गए हैं तो स्थिति भी बदल गई है। आर्थिक रूप से सक्षम और किसी भी आयोजन को ईवेंट का रूप देने में माहिर श्री डागा अध्यक्ष बनने के बाद से ही सक्रियता से कांग्रेस को मजबूत करने में लगे हुए हैं। विभिन्न कार्यक्रमों, प्रदर्शन एवं धार्मिक यात्राओं के माध्यम से जनमानस में कांग्रेस की छवि सुधारने के प्रयास शुरू किए हैं लेकिन अब डागा और उनके समर्थकों द्वारा किए जा रहे जिला मुख्यालय पर आयोजनों एवं पुलिस थाने में प्रदर्शन और अन्य कार्यक्रमों में पांसे और वागद्रे समर्थकों के चेहरे नहीं दिखाई दे रहे हैं। लल्ली चौक पर गत दिवस हुए पुतला दहन के आयोजन में भी ऐसी ही स्थिति दिखी जिसमें सिर्फ डागा समर्थक कांग्रेसी ही सक्रिय रहे।
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