Shift: यह एक बड़ा और गंभीर ऐलान है, और यदि इसे कानूनी रूप से लागू किया जाता है, तो यह देश में अपनी तरह का पहला कानून होगा। हालाँकि, किसी भी कानूनी संशोधन को संविधान और न्यायिक प्रक्रिया के तहत लागू करना होता है, क्योंकि भारत में सर्वोच्च दंड (फांसी की सजा) सिर्फ अत्यंत गंभीर अपराधों के लिए ही दिया जाता है, जैसे कि हत्या, आतंकवाद और बलात्कार के विशेष मामलों में।
क्या होगा आगे?
- कानूनी प्रक्रिया:
- अगर सरकार धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक में बदलाव लाने की तैयारी कर रही है, तो इसे पहले मंत्रिमंडल में प्रस्तावित किया जाएगा और फिर विधानसभा में पारित कराया जाएगा।
- इसके बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होगी, क्योंकि यह एक गंभीर संवैधानिक मुद्दा है।
- संवैधानिक वैधता:
- भारतीय संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन जबरन या धोखाधड़ी से किए गए मतांतरण को रोकने के लिए पहले से ही कई राज्य कानून बना चुके हैं।
- यदि किसी को फांसी जैसी सजा देने का प्रावधान जोड़ा जाता है, तो यह संवैधानिक वैधता के लिए अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
- राजनीतिक और सामाजिक असर:
- यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील है।
- अन्य राज्यों में भी ऐसी सख्ती की माँग उठ सकती है।
- मानवाधिकार संगठन इस पर विरोध जता सकते हैं, क्योंकि यह मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा मामला है।
अब आगे क्या?
- देखना होगा कि सरकार इस विधेयक को कैसे प्रस्तुत करती है और इसमें क्या प्रावधान रखती है।
- क्या यह प्रस्ताव न्यायपालिका की संवैधानिक कसौटी पर खरा उतरेगा?
- source internet… साभार….
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