मनभेद के साथ मतभेद होने से कांग्रेस काट रही वनवास

Political Review: बैतूल। बैतूलवाणी राजनैतिक समीक्षा ( भाग-1 ) : संगठन सृजन अभियान के तहत पिछले दो दिनों से जिले भर में कांग्रेसियों की गतिविधियां अचानक बढ़ गई हैं। और अभी दो दिन और ऐसा ही दृश्य जिले के विभिन्न विकासखंड के कांग्रेसियों में दिखाई देगा। क्योंकि जिला कांग्रेस संगठन में आमूलचूल परिवर्तन करने के उद्देश्य से कांग्रेस हाईकमान के निर्देश पर कुछ पर्यवेक्षक कस्बे-कस्बे घूम रहे हैं। वहीं कल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव पांसे की विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत पट्टन एवं निलय डागा के विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत मांडवी के कांग्रेस सम्मेलन में पहुंचे। मांडवी में प्रदेश अध्यक्ष ने जिले में कांग्रेस के विभिन्न गुटो का नेतृत्व कर रहे नेताओं को मंच पर खड़े कर गले मिलवाया जिसको लेकर राजनैतिक हल्को में अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया सामने आ रही हैं।
भीषण गुटबाजी देख हैरान हुए पटवारी
भोपाल से जैसे ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी कार से बैतूल जिले की सीमा में पहुंचे वैसे ही शाहपुर एवं उसके आसपास कांग्रेस के विभिन्न गुटों के नेता अपने समर्थकों के साथ अलग-अलग खड़े होकर अपने नेता के समर्थन में नारे लगाते हुए दिखाई दिए। बीच-बीच में राहुल गांधी और जीतू पटवारी जिंदाबाद के भी नारे सुनाई दिए। लेकिन यहां भी कांग्रेस जिंदाबाद के नारे गायब थे। इसके बाद बैतूल पहुंचने पर भी यही स्थिति दिखाई दी। प्रदेशाध्यक्ष यह सब देखते रहे। फिर पट्टन पहुंचने पर भी एक गुट के नेता के नारों की गूंज सुनाई दी। इसके बाद मांडवी में तो कांग्रेस की गुटबाजी चरम पर पहुंच गई थी क्योंकि वहां तीन नेताओं के समर्थक पूरी ताकत से जिंदाबाद के नारे लगाते रहे। उन्हें लग रहा था कि आज ही प्रदेशाध्यक्ष नए जिलाध्यक्ष के नाम की पर्ची खोलकर जाएंगे। इस तरह से जीतू पटवारी दिन भर में यह समझ गए कि अगर अभी भी कांग्रेस के गुटों में बंटे नेताओं को एक नहीं किया तो जिले में कांग्रेस का भविष्य पूर्व की तरह गर्त में ही रहेगा।
दिल मिलाते तो बेहतर होता
प्रदेशाध्यक्ष ने जब दिन भर में यह समझ लिया कि अब जिले में गुटों में बंटी कांग्रेस को एक नहीं किया गया तो इसके दुष्परिणाम आने वाले समय में भी भुगतने पड़ेंगे। इसीलिए उन्होंने मंच पर पूर्व मंत्री सुखदेव पांसे, पर्व विधायक निलय डागा एवं वर्तमान जिला कांग्रेस अध्यक्ष हेमंत वागद्रे को मंच पर बुलाया और गले मिलवाया। इस गले मिलन समारोह को देखकर वहां उपस्थित कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता यह कहते हुए सुनाई दिए कि ऐसे मिलन हम पिछले कई सालों से देखते आ रहे हैं। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव हो हर बार प्रदेश और देश से आए कांग्रेस नेता यहां के गुटीय नेताओं को मिलवाने का काम करते हैं, और उनके जाने के बाद फिर से वही ढाक के तीन पात हो जाते हैं क्योंकि हर नेता का अपना व्यक्तिगत स्वार्थ रहता है और गुटबाजी किए बगैर वह स्वार्थ पूरा नहीं हो सकता है। राजनैतिक समीक्षकों का मानना है कि ऐसे मिलन समारोह सिर्फ राजनैतिक ढोंग हैं जो बड़े नेताओं को कराना भी मजबूरी है ताकि जिले भर के कार्यकर्ताओं में यह संदेश जाए कि कांग्रेस एक हो गई है।
कांग्रेस गुटबाजी से ही झेल रही वनवास
1996 से कांग्रेस में लोकसभा चुनाव हारने की जो शुरूवात हुई वो 2024 के चुनाव तक कायम है। इस दौरान 1996, 1998, 1999, 2004, 2007, 2009, 2014, 2019 एवं 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के हार का अंतर बढ़ते-बढ़ते अब लाखों में पहुंच गया है। जो जिले के चुनावी इतिहास में एक बड़ा रिकार्ड बन गया है। इसी तरह से विधानसभा चुनाव में 2003, 2008, 2013 एवं 2023 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों को बड़ी संख्या में मुंह की खानी पड़ी थी। 2018 का चुनाव अपवाद रहा। राजनैतिक समीक्षकों का मानना है जिस तरह से छिंदवाड़ा जिले के सांसद रहे कमलनाथ ने पिछले 30-35 वर्षों में बैतूल जिले में कांग्रेस के उम्मीदवारों के चयन में एकतरफा चलाई थी उसका दुष्परिणाम जिले के कांग्रेसी अभी तक भोग रहे हैं।
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