History: नई दिल्ली | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भारत के इतिहास और जीवन दृष्टि को लेकर शिक्षा प्रणाली में बदलाव की वकालत की है। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रमों में भारत को “भारतीय दृष्टिकोण” से प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, न कि पश्चिमी नजरिए से। भागवत मंगलवार को दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) और अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के संयुक्त कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि “आज जो इतिहास पढ़ाया जा रहा है, वह पश्चिमी विचारधारा से लिखा गया है, जिसमें भारत की आत्मा को नहीं दर्शाया गया है।”
🔷 “पश्चिम की सोच में भारत का अस्तित्व नहीं”
भागवत ने इतिहास के उदाहरण देते हुए कहा कि पश्चिमी किताबों में चीन और जापान तो मिलते हैं, लेकिन भारत नहीं मिलता। उनके अनुसार, भारत को सिर्फ भूगोल नहीं, बल्कि जीवनदर्शन और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी समझने की जरूरत है।
“पहले विश्व युद्ध के बाद शांति की बातें हुईं, राष्ट्र संघ बना, लेकिन दूसरा विश्व युद्ध हुआ। आज संयुक्त राष्ट्र है, फिर भी तीसरे युद्ध की चिंता बनी हुई है।” – मोहन भागवत
🌏 “दुनिया भारत की ओर उम्मीद से देख रही है”
भागवत ने कहा कि दुनिया भौतिकवाद से त्रस्त है। पिछले दो हजार वर्षों में पश्चिमी विचारों ने इंसान को सुखी और संतुष्ट बनाने की कोशिशें कीं, लेकिन असफल रहीं। अब समय है कि दुनिया भारतीयता की ओर देखे।
“विज्ञान और अर्थव्यवस्था ने विलासिता बढ़ाई है, लेकिन मानसिक संतुलन, संतोष और आत्मिक शांति नहीं दे पाए हैं।”
🇮🇳 “भारतीयता केवल नागरिकता नहीं, जीवन दृष्टि है”
RSS प्रमुख ने स्पष्ट किया कि “भारतीयता” का अर्थ केवल किसी सीमा के भीतर रहना या नागरिकता होना नहीं, बल्कि यह एक व्यापक दृष्टिकोण है जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चार पुरुषार्थों पर आधारित है।
उन्होंने कहा कि मोक्ष ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है, और भारत की सांस्कृतिक परंपरा इसी संतुलनपूर्ण जीवन दृष्टि से जन्मी है।
💬 “भारत को खुद को तैयार करना होगा”
मोहन भागवत ने देशवासियों से आत्ममंथन करने और भारतीय मूल्यों के अनुसार जीवन जीने की अपील की। उन्होंने कहा कि भारत को फिर से नेतृत्व देने वाला राष्ट्र बनना है, तो यह परिवर्तन परिवार और स्वयं से शुरू करना होगा।
📌 मुख्य बिंदु संक्षेप में:
- पाठ्यक्रमों में बदलाव की जरूरत, ताकि भारत को सही तरीके से समझा जा सके
- पश्चिमी विचारधारा अधूरी, भारत को समाधान की दिशा माना
- भारतीयता = एक आध्यात्मिक जीवन दृष्टि, केवल नागरिकता नहीं
- परिवर्तन की शुरुआत स्वयं और परिवार से जरूरी
- मोक्ष, भारतीय जीवन का अंतिम लक्ष्य बताया
- sabhar…
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