Hearing:भोपाल। मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारियों को 9 साल बाद पदोन्नति मिलने की उम्मीद जगी थी, लेकिन मामला एक बार फिर अदालत में फंस गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार ने प्रमोशन का रास्ता खोलने की कोशिश की थी, लेकिन आरक्षण को लेकर दायर जनहित याचिका के चलते यह मामला हाईकोर्ट में लंबित हो गया है।
⚖️ हाईकोर्ट की कार्यवाही
- 14 अगस्त को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।
- राज्य सरकार ने समय मांगा और बताया कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन और तुषार मेहता राज्य का पक्ष रखेंगे, जिन्हें तैयारी के लिए वक्त चाहिए।
- चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने यह मांग स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई 9 सितंबर को तय की।
- कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि वह स्पष्ट करे कि उसके द्वारा पेश किया गया तुलनात्मक चार्ट जनगणना के आधार पर है या सेवाओं में प्रतिनिधित्व के आधार पर।
- साथ ही, यह भी बताया जाए कि नई प्रमोशन नीति 2025 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन हुआ है या नहीं।
📜 मामला कहां अटका
- मप्र में 2016 से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण पदोन्नति पर रोक लगी हुई है।
- डॉ. मोहन यादव सरकार ने 17 जून 2025 को नई प्रमोशन नीति को मंजूरी दी और 19 जून को गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया।
- इसके तहत 31 जुलाई से पहले सभी विभागों को डीपीसी (Departmental Promotion Committee) की बैठक बुलाने के निर्देश दिए गए थे।
- इस बीच कुछ कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर नई नीति को चुनौती दी।
- याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 2002 की नीति पहले ही हाईकोर्ट ने आरबी राय केस में रद्द कर दी थी, बावजूद इसके सरकार ने उसी तरह की नीति फिर से लागू कर दी है।
🚫 हाईकोर्ट का रुख
- 7 जुलाई को हाईकोर्ट ने सरकार को पुराने (2002) और नए (2025) नियमों की तुलनात्मक रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था।
- साथ ही, तब तक पदोन्नति की प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई।
- फिलहाल सभी 54 विभागों में प्रमोशन प्रक्रिया ठप है।
👥 कर्मचारियों पर असर
- प्रदेश में 9 साल से पदोन्नति पर रोक है।
- इस दौरान एक लाख से अधिक कर्मचारी बिना प्रमोशन पाए रिटायर हो चुके हैं।
- वर्तमान में भी हजारों कर्मचारी प्रमोशन के इंतजार में हैं।
👉 साफ है कि मप्र में कर्मचारियों की प्रमोशन की राह अभी और लंबी हो सकती है, क्योंकि मामला कानूनी पेचीदगियों में उलझा हुआ है।
साभार…
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