Stakes: भोपाल। मध्य प्रदेश कांग्रेस संगठनात्मक संकट से जूझ रही है। प्रदेश के कई जिलों में नए और प्रभावशाली मैदानी नेताओं की कमी साफ दिखाई दे रही है। यही वजह है कि पार्टी विधानसभा से लेकर लोकसभा तक बार-बार उन्हीं चेहरों पर दांव लगाने को मजबूर है। खासतौर पर ओबीसी, एसटी और एससी वर्ग में नेताओं की कमी सबसे ज्यादा महसूस की जा रही है।
बार-बार मैदान में उतारे जा रहे वही चेहरे
हाल ही में घोषित कांग्रेस जिलाध्यक्षों में भी कई ऐसे नेता शामिल हैं जो पहले से ही प्रदेश या केंद्रीय संगठन में जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं।
- सिद्धार्थ कुशवाहा (सतना ग्रामीण जिलाध्यक्ष):
प्रदेश कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग विभाग के अध्यक्ष। उन्हें 2022 में महापौर, 2023 में विधानसभा और 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ाया गया। विधानसभा में जीत दर्ज की, लेकिन लोकसभा चुनाव हार गए। सतना में बड़े ओबीसी नेता की कमी के चलते पार्टी हर मोर्चे पर उन्हीं पर दांव लगा रही है। - ओमकार सिंह मरकाम (डिंडौरी विधायक व पूर्व मंत्री):
आदिवासी नेता, कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य और अब जिलाध्यक्ष। 2024 का लोकसभा चुनाव मंडला से लड़ाया गया था। - महेश परमार (उज्जैन ग्रामीण अध्यक्ष):
एससी वर्ग से आने वाले परमार को भी पार्टी ने लोकसभा चुनाव मैदान में उतारा था। - प्रियव्रत सिंह (राजगढ़ जिलाध्यक्ष):
पूर्व मंत्री, युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर पर कई जिम्मेदारियों का निर्वहन कर चुके नेता। कमलनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके।
दिग्विजय सिंह के पुत्र भी बार-बार जिम्मेदारी में
पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह को भी ग्वालियर संभाग की जिम्मेदारी, युवा कांग्रेस के प्रभारी और अन्य राज्यों में दायित्व दिया गया है। वहीं, बैतूल जिलाध्यक्ष निलय डागा और खंडवा जिलाध्यक्ष प्रतिमा रघुवंशी को क्रमशः सेवा दल और बाल कांग्रेस के प्रभार से मुक्त किया जाएगा।
संगठन की चुनौती
कांग्रेस के भीतर लगातार यह सवाल उठ रहा है कि नए नेताओं को तैयार करने की बजाय पार्टी बार-बार उन्हीं पुराने चेहरों पर निर्भर क्यों है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि संगठन में नई पीढ़ी के स्थानीय नेताओं को अवसर देने की कमी आने वाले चुनावों में कांग्रेस की रणनीति को कमजोर कर सकती है।
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