Plan: भोपाल: मध्य प्रदेश के लगभग 12 लाख सरकारी कर्मचारी पिछले छह साल से कैशलेस स्वास्थ्य बीमा योजना का इंतजार कर रहे हैं। वर्ष 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ सरकार ने इस योजना की घोषणा की थी, लेकिन तीन मुख्यमंत्री बदलने के बावजूद अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका है।
घोषणा और अधर में लटकी योजना
2019 में हुई कैबिनेट बैठक में सभी कर्मचारियों और पेंशनर्स को 5 से 10 लाख रुपये तक कैशलेस इलाज की सुविधा देने का फैसला किया गया था। इसे 1 अप्रैल 2019 से लागू होना था। योजना के तहत स्थायी कर्मचारियों के साथ-साथ संविदा कर्मचारी, शिक्षक, नगर सैनिक और स्वशासी संस्थानों के कार्मिकों को भी शामिल किया गया था। अनुमानित 756 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय भार राज्य सरकार पर आता।
इसके बाद शिवराज सिंह चौहान सरकार ने भी कर्मचारियों को आयुष्मान जैसी योजना से स्वास्थ्य सुरक्षा देने की बात दोहराई। मौजूदा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 9 फरवरी 2024 को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय समिति गठित कर योजना की रूपरेखा तय करने के निर्देश दिए। लेकिन समिति की बैठक और फाइलें मंत्रालय की टेबल तक ही सीमित रह गईं।
समिति में शामिल विभाग
समिति में मुख्य सचिव के अलावा वित्त, राजस्व, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, चिकित्सा शिक्षा, सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारी शामिल किए गए थे। साथ ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एमडी और आयुष्मान भारत निरामयम के सीईओ भी सदस्य बनाए गए।
कर्मचारियों की नाराज़गी
तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के महामंत्री उमाशंकर तिवारी ने कहा:
“तीन मुख्यमंत्री बदल गए लेकिन कर्मचारी अब भी आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं। गंभीर बीमारियों में भी इलाज की सुविधा से कर्मचारी वंचित हैं।”
वर्तमान स्थिति
- कैशलेस सुविधा नहीं: कर्मचारियों को पहले खुद खर्च करना पड़ता है और बाद में विभाग से रिम्बर्समेंट कराना होता है।
- प्रक्रिया जटिल: क्लेम 5 लाख रुपये तक का है तो संभागीय अस्पताल की कमेटी तय करती है, 5 से 20 लाख रुपये तक का क्लेम संचालक स्वास्थ्य सेवाएं की कमेटी मंजूर करती है।
- बाह्य रोगी इलाज: भर्ती न होने की स्थिति में केवल 20 हजार रुपये सालाना तक ही रिम्बर्समेंट मिल पाता है।
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