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Betulvani special: डेढ़ फीट की पगडंडी से स्कूल जाने की मजबूरी

डेढ़ फीट की पगडंडी

जहरीले जीव जंतुओं का हमेशा सताते रहता है डर

Betulvani special: बैतूल। एक तरफ तो प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत गांव-गांव को सड़कों से जोड़ा जा रहा है तो वहीं प्रदेश के मुखिया विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए सीएम राइज अब संदिपनी स्कूल खोल रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी ब्लाक के आदिवासी ग्राम खमालपुर के स्कूल में विद्यार्थियों को पहुंचने के लिए मात्र डेढ़ फीट की पगडंडी के सहारे पहुंचने को मजबूर होना पड़ रहा है। डेढ़ फीट की इस पगडंडी पर चलने के दौरान दोनों ओर पनपी झाड़ियों से जहरीले जीव जंतुओं का हमेशा भय बना रहता है। विद्यार्थियों सहित पालकों ने स्कूल तक पहुंचने के लिए पक्की सडक़ निर्माण करने की मांग की है ताकि बच्चों को सुविधा हो सके।


आदिवासी क्षेत्र का है यह स्कूल


घोड़ाडोंगरी, चिचोली विधानसभा क्षेत्र के घोड़ाडोंगरी ब्लाक में बैतूल जिला मुख्यालय से 14 किमी. दूर बैतूल-सारनी मुख्य मार्ग पर ग्राम खमालपुर स्थित है। इस ग्राम में आदिवासी कल्याण विभाग के द्वारा संचालित माध्यमिक शाला और प्राथमिक शाला है जो लगभग 25 वर्षों से संचालित हो रही हैं। इसी स्कूल में एक छात्रावास भी है जहां अधिकांश आदिवासी छात्र रहकर पढ़ाई करते हैं। खमालपुर के आसपास के कुछ बच्चे इस हॉस्टल में रहते हैं।


25 वर्षों से नहीं बनी है स्कूल जाने की सड़क


जिस भी अधिकारी ने इस स्कूल के भूमि का चयन किया था। उसने यह देखने की आवश्यकता नहीं समझी कि स्कूल आने-जाने के लिए रास्ता कहां से रहेगा? 25 वर्षों के बाद आज भी स्कूल जाने के लिए डेढ़ फीट की पगडंडी ही सहारा है। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने ग्राम के मुख्य मार्ग स्कूल तक बच्चों के आने-जाने के लिए पक्की सडक़ की कई बार मांग कर चुके हंैं लेकिन आज तक स्कूल तक सडक़ का निर्माण नहीं किया गया है।


पगडंडी के दोनों ओर है घांस और झाड़िया


सबसे अधिक दिक्कत यह है कि मात्र डेढ़ की पगडंडी के सहारे बच्चों को स्कूल पहुंचना पड़ता है। जबकि पगडंडी के दोनों ओर घांस और झाडिय़ां है जिससे हमेशा ही बच्चों को भय बना रहता है कि कहीं वह जहरीले जीव जंतुओं का शिकार ना बन जाए। साल के बाकी दिनों मेें तो फिर बात काम चल जाता है कि लेकिन बारिश के दौरान विद्यार्थियों को बेहद परेशानियों का सामना करना पड़ता है।


सरकारी चाहती तो बना सकती थी सड़क


ग्राम खमालपुर से स्कूल तक सड़क बनाने को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि अगर शासन-प्रशासन चाहे तो सड़क बनाना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन इस ओर ध्यान कसी भी अफसर ने ध्यान ही नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि सड़क निर्माण के लिए यदि जमीन अधिग्रहण की कार्यवाही भी करनी पड़े तो करनी चाहिए ताकि बच्चों को आने-जाने में परेशानियों का सामना ना करना पड़ा। ग्रामीणों का कहना है कि इससे सभी के बच्चों को लाभ होगा।
इनका कहना…
शासकीय जमीन का अभाव होने से स्कूल तक सडक़ नहीं बन पा रही है। इसके लिए शासन स्तर से ही जमीन अधिग्रहण कर सड़क बनाई जा सकती है।
रमेश मर्सकोले, सचिव, ग्राम खमालपुर
सडक़ बनाने के लिए शासकीय जमीन का अभाव है। जिस व्यक्ति की निजी जमीन है वह तैयार नहीं है इसलिए सडक़ नहीं बन पा रही है।
दिलीप उइके, पंच एवं पूर्व जनपद सदस्य

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