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Digital Arrest: दिल्ली अटैक के आतंकवादियो को फंडिंग के नाम पर किया डिजिटल अरेस्ट

दिल्ली अटैक के आतंकवादियो

डब्ल्यूसीएल के रिटायर्ड कर्मचारी को तीन दिन रखा होटल में रखा कैद

Digital Arrest: बैतूल। जिले में एक बार फिर सबसे बड़ा सायबर फ्रॉड का मामला सामने आया है जिसमें डब्ल्यूसीएल के रिटायर्ड कर्मचारी को सायबर ठगों ने तीन दिनों तक डिजिटल अरेस्ट करके रखा था। बैतूल पुलिस की सतर्कता से पीडि़त को डिजिटल अरेस्ट से मुक्त कराया गया है। बैतूल पुलिस ने पीडि़त को 73 लाख रुपए की ठगी से बचा लिया है। वीडियो कॉल के माध्यम से सायबर ठगों ने तीन दिनों तक पीडि़त को कैद करके रखा हुआ था। मामले का आज बैतूल एसपी वीरेंद्र जैन ने पत्रकार वार्ता के माध्यम से खुलासा किया है।


क्या था मामला?


पुलिस अधीक्षक वीरेद्र जैन ने बताया कि डब्ल्यूसीएल बैतूल से रिटायर्ड हुए फोरमेन कर्मचारी चैतराम नरवरे उम्र 64 साल वर्तमान में अशोका गार्डन भोपाल में निवास कर रहे हैं। उनको 28 नवम्बर की शाम 4 बजे वीडियो कॉल आया कि उनके एकाउंट में ब्लैक मनी है जिसे सीज किया जाएगा। इसके अलावा उनका एक एकाउंट मुम्बई में है जिससे दिल्ली अटैक के आतंकवादियों को फंडिंग की गई है। वीडियो कॉल पर ईडी और सीबीआई के अधिकारी बनकर सायबर ठग उन्हें डरा रहे थे। पीडि़त इतना डर गया कि वो सायबर ठगों के जाल में फंस गया और उनकी बातों में आकर प्रायवेट वाहन से भोपाल से पाथाखेड़ा आया और एक होटल के कमरे में डिजिटल अरेस्ट हो गया।


परिजनों को गुमराह करता रहा पीडि़त


जब परिजनों ने पीडि़त से संपर्क किया तो उन्होंने सही स्थान ना बताकर यह बताया कि वो शाहपुर में है और किसी शादी समारोह में शामिल हुए हैं। इस मामले में सायबर ठगों ने पीडि़त को नई सिम खरीदने की सलाह दी और वो नंबर किसी ना देने का दबाव बनाया, और इसी नए नंबर पर सायबर ठग लगातार डरा रहे थे। पीडि़त इतना डर गया था कि उनके सेविंग एकाउंट में 2 लाख थे और एफडी में 71 लाख रुपए थे उन्हें निकालने के लिए तैयार हो गया था। सायबर ठगों ने उनको इतना डराया कि वो बैंक से आरटीजीएस का फार्म भी लेकर आ गए थे।


परिजनों ने किया पुलिस से संपर्क


पीडि़त से फोन पर संपर्क करने के बाद परिजनों को जब शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है तो उन्होंने पुलिस से संपर्क किया और उनकी सूचना पर पाथाखेड़ा चौकी प्रभारी मनोज कुमार उइके, प्रधान आरक्षक ज्ञानसिंह टेकाम, आरक्षक रवि मोहन, आरक्षक राकेश करपे, सैनिक सुभाष की टीम राजेश गेस्ट हाऊस पहुंची जहां पीडि़त रूका हुआ था। पुलिस टीम ने उनको सुरक्षित बाहर निकाला और विस्तृत जानकारी ली तब उन्होंने पूरी डिजिटल अरेस्ट की पूरी कहानी पुलिस को बताई। इसके अलावा पीडि़त के बड़े भाई ने बैतूलबाजार थाना प्रभारी अंजना धुर्वे से संपर्क किया और वे भी उनके साथ पाथाखेड़ा पहुंची। इसके बावजूद भी सायबर ठगों के फोन आते रहे जिसमें पुलिस कर्मियों ने भी उनसे बात की।


27 नंबरों का किया उपयोग


एसपी वीरेंद्र जैन ने बताया कि डिजिटल अरेस्ट के दौरान सायबर ठगों ने अपने आपको ईडी और सीबीआई का अधिकारी बताया। ठगों के द्वारा 3 दिनों में 27 नंबरों का उपयोग किया गया। जब ठगों को शक हुआ कि मामला पुलिस तक पहुंच गया तो ये 27 नंबर बंद हो गए। इन नंबरों की लोकेशन असम की बताई जा रही है। पुलिस इन नंबरों की भी जांच करा रही है। पीडि़त के रिश्तेदार बिपेंद्र मायवाड़े ने बताया कि उनके मौसा जी चैतराम नरवरे को ठगों ने बोला कि उनके द्वारा दिल्ली में हुए अटैक के आतंकवादियों और पुलवामा के आतंकवादियों को फंडिंग की गई है। इसको लेकर उनकी गिरफ्तारी की जा सकती है। यह भी कहा कि अगर गिरफ्तारी हुई तो बदनामी होगी और उनके बेटे की शादी नहीं हो पाएगी।


अभी भी है जागरूकता की जरूरत


एसपी वीरेंद्र जैन ने बताया कि सायबर ठगी को रोकने के लिए जागरूकता की बेहद आवश्यकता है। पुलिस इस दिशा में लगातार कार्य कर रही है, बावजूद इसके कई लोग जागरूकता की कमी के कारण सायबर ठगों के जाल में फंसकर अपनी मेहनत की कमाई लूटा देते हैं। उन्होंने बताया कि डिजिटल अरेस्ट जैसा कोई शब्द भारतीय कानून में नहीं है। कोई भी जांच एजेंसी वीडियो कॉल, व्हाट्सएप कॉल या सोशल मीडिया के अन्य माध्यम से किसी को भी गिरफ्तार नहीं कर सकती है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि सायबर ठगी से बचने के अपनी निजी बैंकिंग जानकारी किसी से भी साझा ना करें। अगर किसी के साथ ऐसा होता है तो तत्काल 1930 सायबर हेल्प लाइन अथवा नजदीकी थाने में सूचना दें।

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