तीन माह से बैतूल नहीं आए ड्रग इंस्पेक्टर
Drug Control: बैतूल। छिंदवाड़ा में कोल्ड्रिफ कप सिरप के पीने से बच्चों की मौत का मामला सामने आने के बाद इस कप सिरप में डायएथिलिन ग्लायकाल की मात्रा निर्धारित से कई गुना ज्यादा 46.2 पाई गई है। इसे मेडिकल की भाषा में जहर ही माना जाता है जो बच्चों के लिए जानलेवा साबित हुआ। इससे सीधे तौर पर बच्चों की किडनी फेल हुई और उनकी मौत हो गई। ये बच्चों की किडनी फेल नहीं हुई बल्कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग का सिस्टम फेल हो गया। इसके पीछे सबसे बड़ी लापरवाही ड्रग कंट्रोलर की है। अगर समय इस सिरप का सेम्पल ले लिया जाता तो शायद लोगों के घर के इकलौते चिराग नहीं बुझते। इस संबंध में बैतूल के प्रभारी ड्रग इंस्पेक्टर संजीव जादौन से उनके मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया ताकि उनका पक्ष भी रखा जा सके लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
बैतूल में भी सेम्पल लेने से परहेज
बैतूल में दो बच्चों की मौत भले ही छिंदवाड़ा से लिए गए सिरप से हुई हो लेकिन इस घटना से बैतूल जिले में दवाईयों के सेम्पल लेने का सवाल लाजमी है। और इसको लेकर जब बैतूलवाणी ने स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों से पड़ताल की तो पता चला कि जिले के प्रभारी ड्रग इंस्पेक्टर के द्वारा दवाओं के सेम्पल की जानकारी पिछले तीन माह से विभाग को नहीं दी है। अब सवाल यह है कि क्या ड्रग इंस्पेक्टर के द्वारा पिछले तीन या कई महीनों से जिले की दवा दुकानों से सेम्पल लिए हैं या नहीं लिए हैं? अब प्रशासन को भी इस मामले में गंभीर होना पड़ेगा और इस विषय पर भी जांच करवानी पड़ेगी कि जिले में मेडिकल स्टोरों पर बिक रही दवाईयों का सेम्पल लिया जा रहा है या नहीं? क्योंकि इस सीजन में बच्चों को सर्दी-खांसी होती है और ऐसे में उन्हें इस तरह के सिरप दिए जाते हैं।
प्रत्येक दवाई की होनी चाहिए जांच
इस घटना के बाद आम जनता के मन में भी यह सवाल उठ रहा है कि जो दवाई वो उपयोग कर रहे हैं उनके सेम्पल लेकर जांच कराई जाती है कि नहीं? और अगर जांच कराई जाती है तो यह बात भी सार्वजनिक होना चाहिए कि कौन सी दवाई का सेम्पल पास या फेल हुआ है? लोगों का कहना यह भी है कि कई बार कई दवाईयों के साइड इफेक्ट भी होते हैं। इन साइड इफेक्ट को मरीज के ऊपर ढकेल दिया जाता है कि यह दवाई उन्हें शूट नहीं हो रही है। लेकिन ये भी हो सकता है कि उस दवाई में कोई कंटेंट ठीक नहीं हो जिसके कारण यह इफेक्ट हो रहे हैं।
सिरप पीने से बैतूल में बुझे दो चिराग
सबसे बड़े दुख की बात यह है कि परासिया के डॉक्टर प्रवीण सोनी की लिखी दवाई से जिन दो बच्चों की मौत हुई है वे अपने-अपने घरों के इकलौते बच्चे थे। इनके माता-पिता के ऊपर किस तरह की बीत रही है यह वहीं बेहतर जानते हैं। कलमेश्वरा निवासी कैलाश यादव जिनका तीन साल 11 महीने का बेटा कबीर जिसकी मौत हो गई। उसे बचाने के लिए उन्होंने अपनी जमीन तक गिरवी रख दी और साढ़े 4 लाख रु. इलाज में खर्च कर दिए। इसी तरह से ग्राम पंचायत जामुनबिछवा के निवासी निकलेश धुर्वे जो मजदूरी का काम करते हैं उन्होंने भी अपने इकलौते 2 साल के बेटे निहाल को बचाने के लिए रिश्तेदारों से 65 हजार रुपए का कर्ज लेकर इलाज पर खर्च किया लेकिन अपने बेटे को नहीं बचा पाए।
रतलाम और कई शहरों में बनती रही दवाईयां
मध्यप्रदेश के रतलाम और कई शहरों में कई तरह की दवाईयों का निर्माण होता है। मिली जानकारी के अनुसार इन दवाईयों पर निर्माण कंपनी के पते के रूप में हिमाचल प्रदेश के शिमला और कई अन्य शहरों के नाम प्रिंट रहते हैं। पूर्व में भी ऐसी कई दवाईयों में फंगस निकल चुका है। इन छोटे-छोटे शहरों में बनने वाली दवाईयों की गुणवत्ता भी बहुत खराब बताई जाती है। बताया जाता है कि इन कंपनियों के एमआर चिकित्सकों को अधिक कमीशन का लालच देते हैं। इसलिए जानते और बुझते हुए कई झोलाछाप चिकित्सक इन दवाईयां का भरपूर उपयोग अपने मरीजों के लिए करवाते हैं और विदेश यात्रा का लुफ्त उठाते हैं। ऐसी चिकित्सक और दवा कंपनियों को लोगों के मरने-जीने का कोई फर्क नहीं पड़ता है। चर्चा तो यह भी होती है कि ऐसे दवा कंपनियों के साथ ड्रग इंस्पेक्टर जैसे अधिकारी-कर्मचारी भी शामिल रहते हैं जो कि हमेशा सख्त कार्यवाही करने से बचते रहते हैं।
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