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Earthquake: कर्नाटक में जातिगत जनगणना रिपोर्ट से मचा सियासी भूचाल

कर्नाटक में जातिगत जनगणना

वोक्कालिगा-लिंगायत समुदायों में असंतोष

Earthquake:बेंगलुरु: कर्नाटक में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को लेकर राजनीतिक भूचाल मच गया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा 17 अप्रैल को बुलाई गई विशेष कैबिनेट बैठक से पहले ही रिपोर्ट के कुछ लीक हुए आंकड़ों ने राज्य की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है।

सूत्रों के मुताबिक, रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय को राज्य की सबसे बड़ी आबादी बताया गया है। इसके बाद अनुसूचित जाति (SC) और जनजाति (ST) समुदायों का स्थान है। इस रिपोर्ट में परंपरागत रूप से राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाली वोक्कालिगा और लिंगायत जातियों की संख्या अपेक्षाकृत कम दर्शाई गई है, जिससे इन समुदायों में गहरा असंतोष उत्पन्न हो गया है।


कांग्रेस में अंदरूनी मतभेद

रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस पार्टी के अंदर भी मतभेद उभरने लगे हैं। डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार, जो खुद वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं, रिपोर्ट को लेकर असहज दिखाई दिए। वहीं, लिंगायत नेता और उद्योग मंत्री एमबी पाटिल ने रिपोर्ट के आंकड़ों को सिरे से खारिज कर दिया और दावा किया कि लिंगायतों की संख्या एक करोड़ से अधिक है, जबकि रिपोर्ट में यह आंकड़ा काफी कम बताया गया है


आरक्षण की नई संरचना और विरोध की आशंका

रिपोर्ट में राज्य में आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 73.5% तक करने का प्रस्ताव दिया गया है। इसमें:

  • अनुसूचित जाति (SC): 15%
  • अनुसूचित जनजाति (ST): 7.5%
  • वोक्कालिगा: 7%
  • लिंगायत: 8%

हालांकि, वर्गीकरण की प्रक्रिया और समुदायों की श्रेणियों में बाँटने को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं। वोक्कालिगा संघ और वीरशैव महासभा जैसे संगठनों ने रिपोर्ट जारी होने पर विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है। 16 अप्रैल को मठ प्रमुखों की बैठक में आंदोलन की रणनीति तय की जाएगी


बीजेपी ने कांग्रेस पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया

विपक्ष के नेता आर अशोक ने कांग्रेस पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि यह रिपोर्ट ‘संख्याओं की हेराफेरी’ है और मुसलमानों को बहुसंख्यक बताना तुष्टिकरण की राजनीति का हिस्सा है। बीजेपी ने पहले ही सरकारी टेंडरों में मुस्लिम आरक्षण को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा था, अब यह नया विवाद राजनीतिक धार को और तेज कर रहा है।


राजनीतिक संतुलन की परीक्षा में कांग्रेस

रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस सरकार एक कठिन राजनीतिक संतुलन साधने की कोशिश में है। एक ओर वह सामाजिक न्याय और नए वोट बैंक को साधने की दिशा में कदम बढ़ा रही है, वहीं दूसरी ओर वोक्कालिगा और लिंगायत जैसे पारंपरिक समर्थक समुदायों को नाराज़ करने का खतरा भी मोल ले रही है। राज्य की राजनीति में जातिगत गणना की यह रिपोर्ट एक टर्निंग पॉइंट साबित हो सकती है। आने वाले दिनों में इसके सामाजिक और राजनीतिक असर और भी व्यापक हो सकते हैं।

साभार…

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