Exposure: भोपाल। छिंदवाड़ा में 17 बच्चों की कफ सिरप से हुई मौत के बाद प्रदेश में प्रतिबंधित दवाओं पर सख्ती के आदेश दिए गए, लेकिन हाल ही में जारी वित्त वर्ष 2024-25 की कैग (CAG) रिपोर्ट ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्यप्रदेश में प्रतिबंधित दवाओं की बड़े पैमाने पर खरीदारी की गई है।
कैग रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर 2021 में 518 ऐसी दवाएं खरीदी गईं, जिन्हें भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रतिबंधित (Banned) घोषित किया था। वर्ष 2017 से 2022 के बीच राज्य औषधि निगम ने इन दवाओं की खरीद के लिए कंपनियों से अनुबंध भी किए।
153 लाख रुपए के अनुबंध, 22.96 लाख की स्थानीय खरीद
रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रतिबंध के बावजूद निगम ने इन दवाओं के लिए 153.46 लाख रुपए के अनुबंध किए, जबकि 22.96 लाख रुपए की दवाएं जिला स्तर पर लोकल टेंडर के माध्यम से खरीदी गईं।
कैग ने कहा कि इस तरह की खरीद सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा है और यह दिखाता है कि टेंडर प्रक्रिया के दौरान पर्याप्त सतर्कता नहीं बरती गई।
कानूनी स्थिति: 1940 का औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम
भारत सरकार ने औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के तहत मानव उपयोग के लिए दवाओं की निगरानी और नियंत्रण के प्रावधान किए हैं। इसी अधिनियम के तहत केंद्र सरकार प्रतिबंधित दवाओं की सूची जारी करती है।
कौन सी दवाएं बैन हुईं और कब
कैग रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि
- मेट्रोनिडाजोल + नॉरफ्लोक्सासिन कॉम्बिनेशन पर 10 मार्च 2016 को प्रतिबंध लगाया गया था,
- 7 सितंबर 2018 को भारत सरकार ने इसके निर्माण, बिक्री और वितरण पर पूर्ण रोक लगाई।
सुप्रीम कोर्ट ने भी दिसंबर 2017 में इस प्रतिबंध को यथावत रखा।
इसके बावजूद निगम ने इस संयोजन दवा की खरीदी जारी रखी।
कफ सिरप पर भी कार्रवाई की मांग
जन स्वास्थ्य अभियान इंडिया ने भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र लिखकर देशभर में खांसी की सिरप के निर्माण, बिक्री और प्रचार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
पत्र में कहा गया कि हाटी समिति (1975), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूनिसेफ और भारतीय शिशु रोग अकादमी (IAP) ने बच्चों में कफ सिरप के उपयोग को हानिकारक और अवैज्ञानिक बताया है।
कैग की चेतावनी
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर विभाग ने टेंडर जारी करने से पहले प्रतिबंधित दवाओं की सूची की जांच की होती, तो इन दवाओं की खरीद को रोका जा सकता था। रिपोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि ऐसी लापरवाही से न केवल सरकारी धन की हानि हुई है, बल्कि जनस्वास्थ्य पर भी गंभीर खतरा उत्पन्न हुआ है।
साभार…
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