Faith: भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि भारत का हृदय माने जाने वाले मध्यप्रदेश की पहचान केवल प्राचीन धरोहरों, मंदिरों और जनजातीय संस्कृति से ही नहीं है, बल्कि यहाँ की नदियाँ भी इसकी असली धरोहर हैं। प्रदेश की 750 से अधिक नदियाँ जीवन, आस्था और सभ्यता की संवाहक रही हैं। इन्हीं के कारण मध्यप्रदेश को ‘नदियों का मायका’ कहा जाता है। मुख्यमंत्री ने बताया कि प्रदेश से उद्गमित नदियाँ गंगा, नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, माही और महानदी जैसे विशाल प्रवाह तंत्रों में समाहित होकर पूरे भारत को जीवन देती हैं।
संस्कृति से आस्था तक
नदियों के किनारे बसे नगर और धार्मिक स्थल सदियों से संस्कृति और आस्था के केंद्र रहे हैं। उज्जैन की क्षिप्रा नदी महाकालेश्वर और सिंहस्थ कुंभ से जुड़ी है, वहीं नर्मदा तट पर महेश्वर और ओंकारेश्वर शैव परंपरा के प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। बेतवा नदी ने ओरछा, सांची और विदिशा जैसे नगरों को समृद्ध किया।
भौगोलिक विविधता
विंध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियों से बहने वाली नर्मदा और ताप्ती पश्चिम की ओर जाकर समुद्र में मिलती हैं, जबकि चंबल, क्षिप्रा, बेतवा और सोन उत्तर व पूर्व की ओर गंगा-यमुना से मिलती हैं। माही, वैनगंगा और तवा जैसी नदियाँ भी अलग-अलग बेसिनों को पोषित करती हैं।
प्रमुख परियोजनाएँ
प्रदेश की नदियों पर अनेक सिंचाई एवं जलविद्युत परियोजनाएँ बनी हैं।
- केन-बेतवा लिंक परियोजना बुंदेलखंड की समृद्धि की कुंजी मानी जा रही है।
- चंबल-पार्वती-कालीसिंध लिंक मध्यप्रदेश और राजस्थान दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- बाणसागर परियोजना (सोन नदी) से रीवा-शहडोल क्षेत्र को लाभ मिल रहा है।
- तवा, बरगी, गांधीसागर और ओंकारेश्वर परियोजनाएँ प्रदेश की ऊर्जा और सिंचाई का मुख्य आधार हैं।
नर्मदा का विशेष महत्व
नर्मदा (रेवा) को शिव की पुत्री माना जाता है। मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से गंगा स्नान का पुण्य मिलता है। 3,000 किमी से अधिक लंबी नर्मदा परिक्रमा आज भी सबसे बड़ा तप मानी जाती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश की नदियाँ केवल जल का स्रोत नहीं बल्कि हमारी संस्कृति, आस्था और विकास की जीवनरेखा हैं। इन्हीं के संरक्षण से प्रदेश और देश की समृद्धि सुनिश्चित होगी।
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