Government machinery: बेंगलुरु: कर्नाटक के दूर-दराज गांवों में इन दिनों एक अलग ही क्रांति चल रही है—सड़क क्रांति। खराब और टूटी सड़कों से परेशान ग्रामीण अब सरकार की बाट नहीं जोह रहे, बल्कि खुद अपने गांव की सड़कें बना रहे हैं। चंदा, श्रमदान और एकजुटता की मिसाल पेश करते हुए ग्रामीणों ने न केवल अपने रास्तों को संवारा, बल्कि पूरे सिस्टम को जिम्मेदारी का संदेश भी दिया।
🛤️ सरकार से थक गए, खुद सड़क बना दी
- चिकमंगलूर के श्रुंगी क्षेत्र में भारतीयनूर और बनशंकरी गांव के लोगों ने ₹15.75 लाख इकट्ठा कर 286 मीटर लंबी सड़क बनाई।
- हासन के मत्स्यशाला गांव में एक स्थानीय नागरिक ने 4 ट्रक ईंट-पत्थर दान कर दिए, फिर गांव वालों ने चंदा और श्रमदान कर सड़क बना दी।
- गांव के पंडियन डी कहते हैं: “हम अपने नेताओं से अब कोई उम्मीद नहीं रखते। हमने अपनी सड़क खुद बना ली।”
🛠️ ‘पीपल्स रोड’ मूवमेंट का असर
इस अनूठी पहल को संगठित रूप देने वाले स्वप्नील बंडी, जो ‘पीपल्स रोड’ अभियान चला रहे हैं, बताते हैं:
“हम हर राज्य में ऐसी मुहिम शुरू करना चाहते हैं। अब तक 286 गांवों ने हमसे संपर्क किया है।”
📍 6 जिलों के 7 गांवों से रिपोर्ट
1️⃣ कोप्पल
कोंदी गांव की 1.5 किमी सड़क, जिसमें बड़े-बड़े गड्ढे थे, लोगों ने मिलकर खुद बना दी। टू-व्हीलर तक नहीं चल पा रहे थे।
2️⃣ शिवमोग्गा
होलेकेरे गांव में एक स्कूल बस कीचड़ में फंस गई। बच्चों को निकालना मुश्किल हुआ। इसके बाद गांववालों ने ₹50,000 जुटाकर 2 किमी सड़क 10 दिन में बना दी।
3️⃣ धारवाड़
अरसनकोल गांव में स्कूल के बच्चों ने खुद गड्ढे भरे। बाद में गांव वालों ने उसी जगह पक्की सड़क बनवा दी।
4️⃣ कोडागु
गोणिकोप्पा में ऑटो चालकों ने हर दिन गड्ढे भरने का जिम्मा उठाया। आरामनगर से बस स्टॉप तक 2 किमी सड़क कई बार रिपेयर की।
5️⃣ गडग
मुगलीगुंडा गांव में हर रविवार श्रमदान कर ग्रामीणों ने 2 किमी सड़क बना दी। गांव के युवा, बुज़ुर्ग और महिलाएं सभी जुड़ते गए।
🧭 राजनीतिक और प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल
इन ग्रामीणों की बातें सत्ता और प्रशासन की पोल खोलती हैं। ग्रामीण कहते हैं कि वर्षों से शिकायत के बावजूद कोई अधिकारी नहीं आया, न कोई ठेका पास हुआ।
“हमने चुनावों में भरोसा किया, अब खुद पर भरोसा करना सीखा है,” — ये कहना है धारवाड़ जिले के एक युवा का।
🏁 संदेश साफ है: जब जनता जागती है, रास्ते बनते हैं
कर्नाटक के इन गांवों ने जो कर दिखाया है, वो पूरे देश के लिए एक सबक है—सरकारी सिस्टम से परे जाकर अगर लोग एकजुट हो जाएं, तो बदलाव मुमकिन है।
साभार…
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