Hazard: दिल्ली: दिल्ली में स्ट्रे डॉग्स को लेकर पिछले दिनों चली खींचतान अब शांत होती नजर आ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए स्पष्ट किया है कि नसबंदी (स्टेरेलाइजेशन) के बाद कुत्तों को उसी क्षेत्र में छोड़ा जाएगा। केवल आक्रामक और रेबीज से ग्रस्त कुत्तों को शेल्टर होम में रखा जाएगा। कोर्ट के इस फैसले के बाद डॉग लवर्स ने राहत की सांस ली है।
बीमारी रोकने के लिए वैक्सीनेशन अनिवार्य
विशेषज्ञों के अनुसार, कुत्तों के काटने और उनसे फैलने वाली बीमारियों को रोकने के लिए नियमित वैक्सीनेशन बेहद जरूरी है। आमतौर पर लोगों को केवल रेबीज वैक्सीन की जानकारी होती है, जबकि वास्तव में कुत्तों को कुल 11 प्रकार की वैक्सीन दी जाती हैं। इनमें से कुछ कोर और कुछ नॉन-कोर वैक्सीन होती हैं।
मुख्य वैक्सीन
- रेबीज वैक्सीन (1 ईयर और 3 ईयर) – 3 महीने की उम्र से डोज दी जाती है। 1-ईयर वैक्सीन का हर साल बूस्टर जरूरी है, जबकि 3-ईयर वैक्सीन का पहला बूस्टर एक साल बाद और उसके बाद हर 3 साल में लगता है।
- डिस्टेंपर वैक्सीन – 6 से 16 हफ्तों की उम्र में कम से कम 3 डोज दी जाती हैं। यह बीमारी ब्रेन डैमेज और कई गंभीर संक्रमण पैदा करती है।
- पार्वोवायरस वैक्सीन – गंभीर उल्टी और खूनी दस्त से बचाव करती है। शुरुआती डोज के बाद हर साल बूस्टर और फिर हर 3 साल में लगाया जाता है।
- एडेनोवायरस (टाइप 1 और 2) – यह बीमारी राल, छींक और मल के जरिए फैलती है और लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। शुरुआती सीरीज के बाद नियमित बूस्टर की आवश्यकता होती है।
नॉन-कोर वैक्सीन
- पैराइंफ्लुएंजा
- बोर्डेटेल्ला ब्रोन्काईसेप्टिका (कैनल कफ)
- लाइम डिजीज
- लेप्टोस्पाइरोसिस
- कैनाइन इंफ्लुएंजा
विशेषज्ञों की राय
पशु-चिकित्सकों का कहना है कि यदि सभी स्ट्रे और पालतू कुत्तों का नियमित टीकाकरण सुनिश्चित किया जाए तो रेबीज जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा काफी हद तक कम किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब जिम्मेदारी नगर निगमों और स्थानीय प्रशासन पर बढ़ गई है कि वे नसबंदी और वैक्सीनेशन कार्यक्रम को तेजी से लागू करें।
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