प्रत्याशी चयन में जिताऊ को नहीं समर्थक को देते थे महत्व

Betulwani Special: बैतूल। इंदिरा गांधी और संजय गांधी के दौर में 1980 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के टिकट वितरण में कमलनाथ को बैतूल से टिकट दिया जाना तय हो गया था। लेकिन जिले के तत्कालीन वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के विरोध के बाद यह घोषणा रूक गई और बताया जाता है कि इसी दौरान कमलनाथ ने छिंदवाड़ा जिले के तत्कालीन कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में कर कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बनाया और छिंदवाड़ा से लोकसभा टिकट लेने में सफलता हो गए। गौरतलब है कि 1977 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस का देश के अधिकांश क्षेत्रों में बुरी तरह से सफाया हो गया था तब उत्तर भारत के कई राज्यों में से मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा की सीट से कांग्रेस के गार्गीशंकर मिश्रा चुनाव जीतने में सफल रहे थे इसीलिए छिंदवाड़ा सीट पर सभी की निगाहें थी। बैतूल से कमलनाथ को टिकट दिए जाने की घोषणा जिन कारणों से रूकी थी तभी से कमलनाथ बैतूल जिले की कांग्रेस को अप्रत्यक्ष रूप से डैमेज करते रहे। लेकिन कांग्रेस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कल जिला कांग्रेस के नए अध्यक्ष की घोषणा के दौरान कमलनाथ के ना चाहने के बावजूद पूर्व विधायक निलय डागा जिला कांग्रेस अध्यक्ष बन गए। इससे ऐसी धारणा बन रही है कि अब कांग्रेस में अब बैतूल जिले के मामले में नए समीकरण बनेंगे और 2028 के विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में किसी मठाधीश का हस्तपेक्ष किए जाने की संभावना कम हो जाएगी।
निलय को दिया था दो टूक जवाब?

कांग्रेस के संगठन सृजन अभियान के चलते कांग्रेस में हर जिले में नए अध्यक्ष का चयन होना था। इस चयन के लिए पर्यवेक्षकों के आने और घोषणा के बीच लगभग दो माह का समय लग गया। कांग्रेस केे विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इसी दौरान पूर्व विधायक निलय डागा अपने साथियों के साथ छिंदवाड़ा पहुंचे थे और उन्होंने कमलनाथ से भेंट कर जिला अध्यक्ष पद के मनोनयन के लिए समर्थन मांगा था लेकिन बताया जाता है कि उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे हेमंत वागद्रे को पुन: जिला अध्यक्ष बनाए जाने के लिए अनुशंसा कर चुके हैं। इसके बावजूद निलय डागा ने अपने स्वयं के कर्नाटक, दिल्ली, और मध्यप्रदेश के अपने संपर्कों के बल पर जिला अध्यक्ष पद पर नियुक्ति करवा ली।
जिले में कांग्रेस को ऐसे किया डैमेज
1980 में छिंदवाड़ा सांसद बनने के बाद इंदिरा गांधी और प्रदेश में दिग्विजय सिंह का साथ पाकर कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस में शक्तिशाली होते गए और बैतूल सहित कई जिलों में संगठन एवं चुनाव में उम्मीदवारों के चयन में महत्वपूर्ण निभाने लगे थे। लेकिन विशेषकर बैतूल जिले से उनकी टीस बनी रहने की खबरें चर्चा में बनी रही। बताया जाता है कि इस दौरान उन्होंने ऐसे-ऐसे उम्मीदवारों बैतूल के विभिन्न सीटों और लोकसभा में उम्मीदवार बनवाया जिनकी लोकप्रियता और संपर्कों के पैमाने में अन्य नेताओं से कमजोर थे।
गर्ग की जगह छिंदवाड़ा वाले को दिलाई थी टिकिट

कांग्रेस के बुरे दौर में 1977 में जो नेता कांग्रेस की टिकट पर पांचों विधानसभा सीट पर लड़े थे। उन्हें ही 1980 में पुन: टिकट दिए जाने का पार्टी ने क्राइटएरिया बनाया। लेकिन मुलताई सीट से 1977 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े राधाकृष्ण गर्ग को 1980 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दी। बाकी चारों उम्मीदवार रिपीट हुए। बताया जाता है कि उस समय कमलनाथ ने कांग्रेस हाईकमान को यह जानकारी भिजवाई कि 1977 में मुलताई से कांग्रेस की टिकट पर सुंदरलाल जायसवाल लड़े थे। और 1980 के विधानसभा चुनाव में मुलताई से सुंदरलाल जायसवाल को कांग्रेस की टिकट मिल गई। सुंदरलाल जायसवाल छिंदवाड़ा जिले के परासिया में नगर पालिका अध्यक्ष थे। यह बात अलग है कि सुंदरलाल जायसवाल इस चुनाव में मुलताई सीट पर तीसरे नंबर पर रहे।
2018 में कटवाई थी विनोद डागा की टिकट

2018 के चुनाव में बैतूल सीट से तत्कालीन पूर्व विधायक विनोद डागा पुन: कांग्रेस की टिकट के लिए सशक्त दावेदार थे क्योंकि 2013 में कुंबी बाहुल्य माने जाने वाली बैतूल सीट से कुंबी समाज के हेमंत वागद्रे लगभग 24 हजार 347 के बड़े अंतर से चुनाव हार गए थे। लेकिन बताया जा रहा है कि षडय़ंत्र पूर्वक विनोद डागा की टिकट काटी गई और राजनीति में नए मैदान में उतरे उनके पुत्र निलय डागा को उनके स्थान पर टिकट दिलवाई गई। उस समय कांग्रेसियों में यह चर्चा जोरों में रही कि विनोद डागा की टिकट दो कारणों से काटी गई क्योंकि विनोद डागा चुनाव लड़ते और जीत जाते, और सरकार बनती तो उनका मंत्री पद पर दावा मजबूत हो जाता। वहीं निलय डागा को टिकट देने के बाद अगर वे हार जाते तो भविष्य डागा परिवार का चुनाव लडऩे का क्लेम खत्म हो जाता। क्योंकि इसके पूर्व विनोद डागा 1998 में चुनाव जीतने एवं 2003 एवं 2008 में चुनाव हार चुके थे लेकिन षडय़ंत्रकारियों का षडय़ंत्र तब असरकारक नहीं रहा जब निलय डागा 2018 में चुनाव जीत गए। और इसी दौरान सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए लेकिन 15 महीने की कमलनाथ की सरकार में निलय डागा उपेक्षित रहे और जिले के मुलताई विधायक सुखदेव पांसे को मंत्री बनाकर कमलनाथ ने पूरे जिले की कमान सौंप दी।
2023 में निशा बांगरे को मिला झटका

2023 के विधानसभा चुनाव के दौर में यह चर्चा जोरों पर थी कांग्रेस एवं कमलनाथ के आश्वासन पर ही तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे ने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित आमला सीट से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लडऩे के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने उस समय 229 टिकटों की घोषणा कर दी थी। लेकिन आमला होल्ड पर कर दी गई थी। इससे यह संभावना बलवती हो गई थी कि निशा बांगरे को आमला से उम्मीदवार बनाया जा रहा है। लेकिन अंतिम क्षणों में उन्हें भी धोखा मिला और मनोज मालवे रिपीट हो गये जो 2018 का चुनाव कांग्रेस की टिकट पर 19 हजार 1997 और 2023 का चुनाव 12 हजार 118 वोटों से भाजपा प्रत्याशी डॉ. योगेश पंडाग्रे से हार गए।
लोकसभा चुनाव में दी छांट-छांट कर टिकट

2009 में बैतूल लोकसभा आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। उस समय जिले में आदिवासी वर्ग में कांग्रेस के दो बार के विधायक पूर्व मंत्री प्रताप सिंह एवं भैंसदेही से विधायक धरमूसिंह दावेदार बन सकते थे लेकिन बताया जाता है कि कमलनाथ ने बैतूल के कुछ नेताओं के कहने पर सरपंच स्तर के ओझाराम इवने को लोकसभा टिकट दिलवा दी जो भाजपा की ज्योति धुर्वे से 97 हजार 917 वोटों से हार गए। जबकि उस समय हरदा जिले के एक निर्दलीय विधायक भी बैतूल-हरदा लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लडऩा चाहते थे। इसी तरह से 2014 में हरदा जिले के रहने वाले अजय शाह को टिकट दी गई जो अधिकांश समय भोपाल रहे वे भी ज्योति धुर्वे से 3 लाख 28 हजार 614 वोटों के रिकार्ड मतों से चुनाव हार गए। इसके बाद फिर कमलनाथ के माध्यम से रामू टेकाम को 2019 में कांग्रेस की टिकट दी गई। रामू टेकाम भोपाल में रहकर राजनीति कर रहे थे वे भाजपा के डीडी उइके से 3 लाख 60 हजार 241 वोटों से हारे। इसके रिकार्ड मतों से हारने के बावजूद रामू टेकाम को 2024 में फिर टिकट दी गई और फिर डीडी उइके से और रिकार्ड मतों से 3 लाख 79 हजार से चुनाव हार गए। इस तरह से कांग्रेस के किसी भी स्थानीय नेता और 1991 से कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में जीत नसीब नहीं हुई है। बताया जाता है कि 1999 में भोपाल के गुफराने आजम के चुनाव हारने के बाद से लोकसभा के हर चुनाव में कांग्रेस की टिकट में कमलनाथ का दखल ही चयन में भारी रहा। जिसका परिणाम सबके सामने है।
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