Oath: नई दिल्ली | भारत के न्यायपालिका इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया जब जस्टिस बी. आर. गवई ने मंगलवार को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित गरिमामयी समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
🌸 मां के चरण छूकर किया भावुक सम्मान
शपथ ग्रहण के बाद जस्टिस गवई ने मंच से उतरकर अपनी मां के चरण स्पर्श किए, जो दृश्य बेहद भावुक और प्रेरणादायी था। यह पल न केवल परिवार के प्रति उनके सम्मान को दर्शाता है, बल्कि उन मूल्यों की भी झलक देता है जिनसे वे प्रेरित हुए हैं।
📚 व्यक्तिगत और पेशेवर सफर
- जन्म: 24 नवंबर 1960, अमरावती, महाराष्ट्र
- वकालत की शुरुआत: 1985
- बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश: 2003
- सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति: 2019
- अन्य पद: NALSA के कार्यकारी अध्यक्ष, MNLU नागपुर के चांसलर
जस्टिस गवई की न्यायिक यात्रा में संवेदनशीलता, निष्पक्षता और सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता रही है। वे ऐसे फैसलों के लिए जाने जाते हैं जिनमें वंचित वर्गों की आवाज को प्राथमिकता मिली।
🧘♂️ दलित समाज से दूसरे CJI, पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश
जस्टिस गवई भारत के पहले बौद्ध CJI हैं और आज़ादी के बाद दलित समुदाय से आने वाले दूसरे मुख्य न्यायाधीश बने हैं। इससे पहले जस्टिस के.जी. बालकृष्णन ने 2007 से 2010 तक यह पद संभाला था।
उनकी नियुक्ति भारत की न्यायपालिका में सामाजिक समावेश की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम मानी जा रही है।
“मैं डॉ. भीमराव अंबेडकर के समानता और न्याय के सिद्धांतों को अपने हर फैसले में जीवंत रखने का संकल्प लेता हूं।”
— जस्टिस गवई, शपथ ग्रहण के बाद
🏛️ कार्यकाल: सिर्फ छह महीने, लेकिन उम्मीदें बड़ी
हालांकि जस्टिस गवई का कार्यकाल महज छह महीनों का होगा, लेकिन न्यायपालिका में सामाजिक प्रतिनिधित्व, संवेदनशीलता, और संवैधानिक मूल्यों की दृष्टि से उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
✊ सामाजिक न्याय की नई उम्मीद
जस्टिस गवई ने अपनी नियुक्ति को एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि समाज के वंचित वर्गों के लिए प्रेरणा बताया है। उन्होंने संकेत दिए हैं कि वे समानता, गरिमा और न्याय के अम्बेडकरी सिद्धांतों को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे।
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