कुछ जातियां बाहर, कुछ शामिल
Shift: जबलपुर — भारत सरकार द्वारा जातिगत जनगणना की घोषणा के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में संभावित फेरबदल की चर्चाएं तेज हो गई हैं। माना जा रहा है कि जनगणना के आंकड़ों के आधार पर कुछ जातियां OBC से बाहर की जा सकती हैं, जबकि कुछ नई जातियों को इसमें शामिल किया जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जिन जातियों ने बीते वर्षों में आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पर्याप्त प्रगति की है, उन्हें OBC श्रेणी से बाहर किया जा सकता है। वहीं, जो जातियां अभी भी पिछड़ेपन के मानकों पर खरी उतरती हैं, उन्हें सूची में जोड़ा जा सकता है।
OBC वर्ग का इतिहास: मंडल और महाजन कमीशन की भूमिका
OBC वर्ग को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का श्रेय बी. पी. मंडल आयोग को जाता है, जिसे 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने गठित किया था। मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1990 में OBC आरक्षण लागू हुआ।
मध्यप्रदेश में OBC जातियों की पहचान के लिए महाजन कमीशन का गठन हुआ था।
- 1980 में बीपी मंडल ने जबलपुर दौरे के दौरान MP सरकार से OBC की जनगणना की मांग की थी।
- मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने रामजी महाजन की अध्यक्षता में यह आयोग गठित किया।
- महाजन कमीशन ने 92 जातियों और कई उपजातियों को OBC श्रेणी में शामिल करने की सिफारिश की थी।
OBC सूची में बदलाव की प्रक्रिया
महाजन कमीशन के दस्तावेज बताते हैं कि जातियों की सामाजिक स्थिति का निर्धारण धार्मिक ग्रंथों, सामाजिक व्यवहार, आर्थिक स्थिति और शिक्षा के स्तर के आधार पर किया गया था।
कमिशन ने कहा था कि:
“ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के अलावा अछूत और सछूत की अवधारणाओं ने जातियों की स्थिति तय की है।”
आज की परिस्थिति में कुछ जातियां सामाजिक रूप से सशक्त हो चुकी हैं और संभवतः वे अब OBC की पात्र नहीं रहेंगी।
जातिगत जनगणना क्यों है अहम?
- OBC की कुल आबादी का सटीक डेटा मिलेगा
- नीतियों और आरक्षण में पारदर्शिता आएगी
- नई जातियों को न्याय मिलने का रास्ता खुलेगा
- तरक्की कर चुकी जातियों के पुनर्वर्गीकरण की संभावना
आगे की राह
जातिगत जनगणना के नतीजों के बाद केंद्र और राज्य सरकारें सामाजिक न्याय की दिशा में नए सिरे से योजनाएं बना सकती हैं। इससे आरक्षण की समीक्षा, कल्याण योजनाओं का पुनर्निर्धारण और समाज के वंचित तबकों को सही लाभ पहुंचाना संभव होगा।
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साभार…
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