Space: इसरो ने अंतरिक्ष में पालक उगाने में सफलता हासिल की है, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए एक बड़ा मील का पत्थर है। इसरो ने पीएसएलवी रॉकेट के चौथे चरण का उपयोग करके पृथ्वी की कक्षा में 350 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक लैब तैयार की है, जहां यह प्रयोग किए जा रहे हैं।
प्रयोग की मुख्य बातें:
- पालक कैलस का विकास:
एमिटी यूनिवर्सिटी-मुंबई द्वारा भेजा गया पालक का कैलस (कोशिकाओं का समूह) अंतरिक्ष में सफलता पूर्वक विकसित हो रहा है। कैलस का चयन इसलिए किया गया क्योंकि यह तेजी से बढ़ता है और इसकी विकास दर को आसानी से मापा जा सकता है। - पूर्व अनुभव:
इससे पहले, अंतरिक्ष में भेजे गए लोबिया के बीजों ने चार दिनों में अंकुरण कर पत्तियां विकसित कर ली थीं। इस अनुभव के आधार पर पालक के प्रयोग को आगे बढ़ाया गया है। - पालक का चयन क्यों?
पालक का हरा रंग इसे इन-बिल्ट कैमरों द्वारा ट्रैक करना आसान बनाता है। इसके अलावा, कैलस का तेज विकास इसे जैविक अनुसंधान के लिए उपयुक्त बनाता है। - पीओईएम-4 मिशन:
इस मिशन के तहत पीएसएलवी-सी60 रॉकेट का उपयोग किया गया, जिसमें एमिटी प्लांट एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल इन स्पेस (APEMS) भेजा गया। - स्पैडेक्स मिशन:
इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष यानों के डॉकिंग और अनडॉकिंग की क्षमता को प्रदर्शित करना है।
महत्व और भविष्य की संभावनाएं:
- अंतरिक्ष में पौधों को उगाने की तकनीक लंबे अंतरिक्ष अभियानों में खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने में सहायक हो सकती है।
- यह न केवल जैविक अनुसंधान के लिए बल्कि मंगल और चंद्रमा पर भविष्य के मिशनों के लिए भी उपयोगी होगा।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
एमिटी यूनिवर्सिटी मुंबई के कुलपति ए. डब्ल्यू. संतोष कुमार ने इसे अंतरिक्ष जैविक अनुसंधान के लिए एक मील का पत्थर बताया। इस परियोजना से प्राप्त शुरुआती डेटा सकारात्मक संकेत दे रहा है। अंतरिक्ष में पालक और लोबिया जैसी फसलों का उगाना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान की सफलता को नए आयाम देता है। यह पहल न केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत की शक्ति को प्रदर्शित करती है, बल्कि भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए भी नई संभावनाएं खोलती है।
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