रासायनिक कचरे से भरे सभी कंटेनर बुधवार रात को भोपाल से रवाना किए गए
Toxic waste: भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ा जहरीला कचरा, जो लगभग 40 सालों से यूनियन कार्बाइड परिसर में पड़ा था, आखिरकार हटा लिया गया है। बुधवार रात 9 बजे, इस कचरे से भरे 12 विशेष कंटेनर हाई सिक्योरिटी में पीथमपुर भेजे गए। सफर के दौरान आष्टा टोल पर 3 किलोमीटर लंबा ट्रैफिक जाम लग गया। लगभग 250 किलोमीटर की दूरी 8 घंटे में तय कर ये कंटेनर पीथमपुर स्थित रामकी एनवायरो प्लांट पहुंचे, जहां इस कचरे को वैज्ञानिक विधि से जलाया जाएगा।
कचरे के निपटान की प्रक्रिया
4 दिनों तक कचरे को विशेष बैग्स में पैक किया गया और कंटेनर्स में लोड किया गया। इस दौरान अत्यधिक सावधानी बरती गई। मजदूरों ने पीपीई किट पहनकर काम किया, और उनकी स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए हर 30 मिनट में उनका निरीक्षण किया गया।
कचरे का निष्पादन पीथमपुर प्लांट में होगा, जो सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के दिशा-निर्देशों के तहत संचालित है। यह कचरा 90 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से जलाया जाएगा, और इसे नष्ट करने में लगभग 5 महीने लगेंगे।
कचरे के हटाने की कानूनी लड़ाई
इस कचरे के निपटान के लिए 20 साल लंबी कानूनी लड़ाई चली।
- 2004 में पहली याचिका दायर हुई।
- 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने पीथमपुर प्लांट में कचरे को जलाने का आदेश दिया।
- 2024 में हाईकोर्ट ने कचरे को जल्द हटाने के निर्देश दिए, जिसके बाद यह प्रक्रिया पूरी हुई।
स्थानीय विरोध और चिंताएं
पीथमपुर में कचरा जलाने के विरोध में 10 से ज्यादा संगठनों ने बंद का आह्वान किया है। इंदौर के डॉक्टरों ने भी कचरा जलाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। विरोधियों का कहना है कि इस कचरे को अमेरिका भेजा जाए, क्योंकि इससे स्थानीय पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
भोपाल गैस त्रासदी का असर
1984 की रात हुई भोपाल गैस त्रासदी में 3,000 से अधिक लोगों की मौके पर मौत हुई थी, जबकि 30,000 से ज्यादा लोग बाद में इसकी वजह से मारे गए। यह त्रासदी आज भी दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक हादसों में गिनी जाती है।
भविष्य की राह
कचरे का सुरक्षित निपटान और इससे प्रभावित क्षेत्रों की सफाई, स्थानीय समुदाय और पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इसके साथ ही, इस प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न विरोध और चिंताओं को भी सुलझाना जरूरी है।
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