Blast Case:मुंबई | 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में आज विशेष एनआईए अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा और सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को “संदेह का लाभ” दिया जाता है।
🔹 क्या है मामला?
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में एक बम धमाका हुआ था। इस हादसे में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। विस्फोट एक मोटरसाइकिल में रखे गए विस्फोटक से हुआ था, जिसे लेकर शुरू में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर आरोप लगा कि वह मोटरसाइकिल उनकी थी।
🔹 जांच और ट्रायल की जटिल यात्रा
- शुरुआती जांच महाराष्ट्र ATS ने की थी।
- 2011 में मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया।
- NIA ने 2016 में चार्जशीट दाखिल की, जिसमें आरोपियों पर UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) की धाराएं लगाई गईं।
- केस की सुनवाई के दौरान तीन जांच एजेंसियां और चार जज बदले गए।
🔹 जज का निष्कर्ष
एनआईए स्पेशल कोर्ट के न्यायाधीश एके लाहोटी ने कहा:
“धमाका हुआ था, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि बम मोटरसाइकिल में रखा गया था। यह भी प्रमाणित नहीं हुआ कि मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा की थी या कि कर्नल पुरोहित ने बम तैयार किया था।”
🔹 प्रज्ञा ठाकुर का बयान
फैसले के बाद साध्वी प्रज्ञा कोर्ट परिसर में भावुक नजर आईं। उन्होंने कहा:
“मैं निर्दोष थी, निर्दोष हूं। मुझे झूठे आरोपों में फंसाया गया। एक षड्यंत्र के तहत भगवा और हिंदुत्व को बदनाम किया गया। आज भगवा की जीत हुई है।”
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें जेल में शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं और उनका पूरा जीवन नष्ट हो गया।
🔹 आगे क्या?
इस फैसले के बाद:
- NIA की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठेंगे।
- केस में “असली दोषी कौन?” यह सवाल फिर खड़ा हो गया है।
- राजनीतिक हलकों में बयानबाज़ी और बहस तेज़ हो सकती है।
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