Technology: भोपाल। बारिश के कारण बार-बार खराब हो रही सड़कों से निजात दिलाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार अब नई सीमेंट ग्राउटेड बिटुमिनस मिक्स (CGBM) तकनीक अपनाने की तैयारी में है। इस तकनीक से बनी सड़कें पानी के बहाव, भारी ट्रैफिक और ऊंचे तापमान का दबाव सहने में सक्षम होती हैं। गुजरात के सूरत में इस तकनीक से बनी सड़क लगातार आठ मॉनसून सीजन झेल चुकी है और अब भी जस की तस है।
कैसे काम करती है CGBM तकनीक?
सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRRI) के चीफ साइंटिस्ट मनोज कुमार शुक्ला के अनुसार—
- सामान्य डामर की सड़कों पर बारिश में गड्ढे बन जाते हैं।
- कंक्रीट सड़कें मोटी और महंगी होती हैं, साथ ही 28 दिन की क्योरिंग चाहिए।
- CGBM में बिटुमिन की पोरस लेयर को सिमेंट मिश्रित सामग्री से ग्राउट कर टिकाऊ बना दिया जाता है।
- इस पर पानी का कोई असर नहीं होता और सड़क कई साल तक मजबूत रहती है।
लागत और मान्यता
- सामान्य डामर की 40 एमएम लेयर की लागत ₹100 आती है, वहीं CGBM की लागत लगभग ₹125 पड़ती है।
- इंडियन रोड कांग्रेस ने इस तकनीक को मान्यता दे दी है और इसके लिए कोड व गाइडलाइन भी जारी कर दी हैं।
प्रदेश में फिलहाल तीन तकनीकें
अभी मध्य प्रदेश में सड़कों का निर्माण थिन व्हाइट टॉपिंग, बेस्ट प्लास्टिक और कोल्ड मिक्स तकनीक से हो रहा है। आगर मालवा, गुना और बैतूल में व्हाइट टॉपिंग से बनी सड़कें इसका उदाहरण हैं।
सरकार का रुख
नगरीय प्रशासन विभाग के कमिश्नर संकेत भौंडवे ने कहा कि टिकाऊ और गुणवत्तापूर्ण सड़कों के लिए लगातार नई तकनीकों पर काम किया जा रहा है। जल्द ही नगरीय क्षेत्रों में CGBM तकनीक को अपनाने पर विचार होगा।
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