तीसरी पीढ़ी तक फैल रहीं बीमारियां, पीड़ितों को अब भी नहीं मिला पूरा इलाज
भोपाल | भोपाल गैस त्रासदी की 41वीं बरसी एक बार फिर वही दर्द, वही जहर और वही अनुत्तरित सवाल सामने लेकर आई है। 3 दिसंबर 1984 की उस काली रात को भले ही 41 वर्ष बीत चुके हों, लेकिन आज भी हजारों परिवार न इलाज पा रहे हैं, न न्याय। यूनियन कार्बाइड प्लांट से निकली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का असर अब तीसरी पीढ़ी के खून तक पहुंच चुका है।
जहर का असर तीसरी पीढ़ी तक — बीमारी बनी रोजमर्रा की हकीकत
प्रभावित बस्तियों में जन्म लेने वाले बच्चों में आज भी
- शारीरिक विकृतियां
- कैंसर
- दिमागी विकास में देरी
- जन्मजात बीमारियां
- सांस से जुड़ी गंभीर समस्याएं
जैसी स्थितियां आम हैं। पीड़ितों का कहना है कि वे उम्र से नहीं, जहर से बूढ़े हो रहे हैं।
70 वर्षीय नफीसा बी चार कदम चलने पर ही सांस फूलने लगती है। 66 वर्षीय अब्दुल हफीज थोड़ी बात करते ही खांसने लगते हैं। 60 वर्षीय शाहिदा बी आज भी उस पल को नहीं भूल पाती जब उनका 8 वर्षीय बेटा गोद में दम तोड़ गया था। ये सिर्फ कुछ उदाहरण नहीं, बल्कि हजारों परिवारों का दर्द है।
इलाज के नाम पर इंतजार—भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल सवालों के घेरे में
पीड़ितों का आरोप है कि अस्पताल में दवाएं खत्म रहती हैं, डॉक्टरों की कमी है और जांचों के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है।
कई बीमारियों का एक ही जवाब मिलता है—
“गैस का असर है… अब जिंदगी ऐसे ही चलेगी।”
इसी वजह से पीड़ितों को महंगे निजी अस्पतालों पर निर्भर होना पड़ रहा है।
जहर क्यों अभी तक जिंदा है?
41 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड परिसर में लगभग 350 टन जहरीला रासायनिक कचरा पड़ा है, जो हर बारिश में भूजल में घुलकर आसपास की बस्तियों तक पहुंच रहा है। कई किलोमीटर तक पानी आज भी जहरीला है, जिसमें कैंसरजनक रसायन पाए जा रहे हैं।
41 साल बाद भी अनुत्तरित सवाल—कब मिलेगा न्याय?
- क्या तीसरी पीढ़ी तक फैले दुष्प्रभावों की वैज्ञानिक स्टडी होगी?
- क्या भूजल शुद्धिकरण का काम पूरा किया जाएगा?
- क्या पीड़ित परिवारों को स्थायी मेडिकल और आर्थिक सहायता मिलेगी?
- क्या जिम्मेदार कंपनियों से वास्तविक क्षतिपूर्ति दिलाई जाएगी?
इन सवालों का जवाब अब तक नहीं मिला है।
पीड़ितों का दर्द—“मौत तो उस रात आई थी, पर हमें जीते-जी कौन मार रहा है?”
जेपी नगर, काजीकैंप, शंकर नगर जैसी प्रभावित बस्तियों में आज भी वही डर, वही तकलीफ और वही उम्मीदें हैं—कि कभी न कभी जहर की यह लंबी कहानी खत्म होगी।
41 साल बाद भी यह त्रासदी दुनिया को यह भयावह संदेश दे रही है कि किसी औद्योगिक गलती का दर्द पीढ़ियों तक पीछा नहीं छोड़ता।
साभार….
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