आजादी के बाद भी जिला मुख्यालय के समीप अंधेरे में किसान
जन जागरण अभियान भाग-3
Campaign: बैतूल। बैतूल-सारनी मार्ग पर जिला मुख्यालय से लगभग 12 किमी. दूर खमालपुर ग्राम के समीप मुख्य मार्ग से लगकर ही सैकड़ों आदिवासी किसानों की कृषि भूमि है। जिनमें वे तीन पीढ़ी से खेती कर रहे हैं। लेकिन देश को आजाद होने के 78 वर्ष बाद भी ये किसान बिजली के अभाव में डीजल इंजन पंप से खेती करने को मजबूर है और जो किसान इस खर्चे को वहन नहीं कर पा रहे हैं वे सिर्फ बरसाती फसल ही ले पा रहे हैं। एक तरफ सरकार कृषि आय बढ़ाने की बात करती है तो वहीं दूसरी तरफ ये आदिवासी किसान डीजल इंजन पंप से खेती करने से उनकी कृषि आय तो नहीं बढ़ नहीं है वरन लगात अवश्य बढ़ रही है।
महंगी खेती से कम हो रही आय
घोड़ाडोंगरी विकासखंड के अंतर्गत आने वाले चिखली आमढाना ग्राम पंचायत के अंतर्गत खमालपुर ग्राम आता है। जिसमें लगभग शत प्रतिशत आबादी आदिवासी निवास करती है। इन्हीं ग्रामवासियों की जमीन खमालपुर से हनुमान डोल मंदिर के बीच 2 किमी. में स्थित है। इन भूमि स्वामियों में भी 95 प्रतिशत किसान आदिवासी हैं जो बिजली के अभाव में अपने खेतों में सरकार की कई योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। बिजली के अभाव में ही खेतों में ट्यूवबेल खनन भी नहीं हो पा रहा है और ना ही इन योजनाओं के तहत मिलने वाली सबसिडी का लाभ यह आदिवासी किसान उठा पा रहे हैं। इसके चलते इन किसानों की कृषि लागत बढऩे के कारण आय कम हो रही है। ट्यूवबेल नहंी होने से फसल भी कमजोर आती है।
नदी के पानी का कर रहे उपयोग
खमालपुर से हनुमान डोल के बीच एक पहाड़ी नदी तीन बार सडक़ पार करती है। इस नदी में जनवरी- फरवरी तक थोड़ा पानी बचा रहता है। जिन किसानों की जमीन नदी के आसपास हैं वे डीजल इंजन पंप से सिंचाई थोड़ी-बहुत फसल उगा लेते हैं लेकिन शेष किसान बारिश पर ही निर्भर रहते हैं। अगर अच्छी बारिश हुई तो फसल हो जाती है वरना भगवान ही मालिक होता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो ये आदिवासी किसान नदी के पानी पर ही आश्रित रहते हैं।
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