Confluence: प्रयागराज में आरंभ हुआ महाकुंभ 2025 अद्वितीय खगोलीय संयोग के कारण 144 वर्षों बाद आयोजित हो रहा है। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है। इस अमृतकाल में संगम में डुबकी लगाने लाखों श्रद्धालु उमड़ पड़े हैं। चार दिनों में ही आगंतुकों की संख्या सात करोड़ के पार पहुँच गई है, और अनुमान है कि आयोजन की पूरी अवधि में यह संख्या 50 करोड़ से अधिक हो सकती है।
आध्यात्म और साधना का पर्व
महाकुंभ केवल स्नान तक सीमित नहीं है; यह भक्ति, साधना और सकारात्मक ऊर्जा का महासंगम है। इस आयोजन में देश-विदेश से साधु-संत, अखाड़े और श्रद्धालु जुटते हैं। पौष पूर्णिमा (13 जनवरी) से आरंभ होकर डेढ़ महीने तक चलने वाला यह पर्व छह प्रमुख स्नान तिथियों से विभूषित है, जिनमें श्रद्धालुओं के लिए अमृत स्नान का विशेष महत्व है।
प्रमुख स्नान तिथियाँ
- पौष पूर्णिमा (13 जनवरी): लगभग 1.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया।
- मकर संक्रांति (14 जनवरी): 3.5 करोड़ लोगों ने संगम में डुबकी लगाई।
- मौनी अमावस्या (29 जनवरी): इस दिन जल में विशेष ऊर्जा का संचार माना जाता है।
- बसंत पंचमी (3 फरवरी): ज्ञान की देवी सरस्वती के प्रकटोत्सव का दिन।
- माघ पूर्णिमा (12 फरवरी): साधकों के कल्पवास की पूर्णता का दिन।
- महाशिवरात्रि (26 फरवरी): भगवान शिव और पार्वती के विवाह का पावन पर्व, महाकुंभ का समापन।
सुरक्षा और आधुनिक प्रबंधन
उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा और प्रबंधन के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया है। महाकुंभ क्षेत्र में टेथर्ड ड्रोन और एंटी-ड्रोन सिस्टम लगाए गए हैं, जिनकी निगरानी एडीजी स्तर के अधिकारियों द्वारा की जाती है। ये ड्रोन लगातार 12 घंटे तक काम कर सकते हैं और 3 किलोमीटर तक का क्षेत्र कवर करते हैं। इनसे भीड़ प्रबंधन, यातायात नियंत्रण, संदिग्ध गतिविधियों की पहचान, और आपातकालीन स्थितियों से निपटने में मदद मिल रही है।
साधकों का कल्पवास और योग साधना
पंद्रह हजार से अधिक साधु-संत इस महाकुंभ में कल्पवास कर रहे हैं। इस दौरान वे सात्विक भोजन और योग साधना द्वारा अपनी आंतरिक ऊर्जा को जाग्रत करते हैं। योग विज्ञान के अनुसार, साधना द्वारा ऊर्जा को ब्रह्मस्तान चक्र पर केंद्रित करने से व्यक्ति अनंत ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ सकता है।
अंतिम चरण और समापन
महाशिवरात्रि (26 फरवरी) को संतों और अखाड़ों का स्नान संपन्न होगा, और इसी के साथ महाकुंभ का औपचारिक समापन होगा। हालांकि, श्रद्धालुओं की उपस्थिति इसके बाद भी एक सप्ताह तक बनी रहने की संभावना है। महाकुंभ 2025 न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है।
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