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Interview: कर्मों का सर्वेक्षण करने के लिए आता है शनि: पं. कांत दीक्षित

कर्मों का सर्वेक्षण करने के लिए

Interview: बैतूल। श्रीरामचरित मानस पर पीएचडी करने वाले मध्यप्रदेश के संभवत: एकमात्र शिक्षाविद् एवं ज्योतिषी डॉ. कांत दीक्षित से बैतूलवाणी के रू-ब-रू कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार संजय शुक्ला ने ग्रहों के प्रभाव, साढ़े साती शनि, कुंडली को लेकर विस्तृत चर्चा की। प्रस्तुत है श्री दीक्षित द्वारा दी गई प्रतिक्रिया के मुख्यअंश-


बैतूलवाणी-ज्योतिषी में आपकी रूचि कैसे हुई?


डॉ. कांत दीक्षित- भारतीय आध्यात्मिक वांगमय के प्रति जिज्ञासा, कुछ पारिवारिक पृष्ठ भूमि और कुछ प्रारब्ध से प्रेरित होकर मैं आध्यात्म की ओर झुका। उसके पश्चात ज्योतिषी के क्षेत्र में आया। इस क्षेत्र में मैं वैज्ञानिकता को प्राथमिकता देना चाहता था। नए शोध के हिसाब से इस क्षेत्र में मैंने 1975-1976 से अपनी सेवाएं देना शुरू की।


बैतूलवाणी- ये प्रश्र कुंडली क्या होती है? और कुंडली मिलान क्या होता है?


डॉ. कांत दीक्षित- कुंडली के अभाव में जब प्रश्रकर्ता सामने आता है और किसी विषय को लेकर प्रश्र करता है तो उस समय हम लोग उसके तात्कालिक गृह स्थितियों की कुंडली बनाते हैं कि उस समय कौन सी लग्र चल रही है। फिर उसके आधार पर उसके कार्य का जो भावेश है उसका निरीक्षण करते हैं। पश्चात आसपास के वातावरण के अनुसार जो लक्षण होते हैं वो भी प्रश्रों के उत्तर देने में कभी-कभी सहायक हो जाते हैं। इस प्रकार हम प्रश्र कुंडली बनाते हैं। और जहां तक कुंडली मिलान की बात है तो उसमें अष्टकूट मिलान देखते हैं कि इसमें कितने गुण मिल रहे हैं, और यह भी यहीं तक सीमित नहीं होता है। कुंडली मिलान बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से होना चाहिए। सबसे पहले दोनों का आयु पक्ष फिर संतान पक्ष फिर सप्तमेष फिर सप्तम भाव फिर ब्रहस्पति देखा जाए जो यह बताता है कि दोनों के पास आध्यात्मिक सुख कैसा है? फिर शुक्र देखा जाए जो बताता है कि दोनों के पास भौतिक सुख कैसा है? उसके बाद देखना चाहिए कि कितने गुण मिल रहे हैं। फिर देखा जाता है मंगली। मंगल जो होता है वो वास्तव में अमंगल नहीं करता है। लेकिन एक मंगली हो और दूसरा मंगली ना हो ऐसी परिस्थिति में भी मंगल की कई वैकल्पिक व्यवस्था होती है और कई इसके परिहार्य होते हैं।


बैतूलवाणी-सफलता, सरकारी नौकरी और भाग्य इनके लिए कौन सा ग्रह प्रबल होना चाहिए?


डॉ. कांत दीक्षित-मुख्यत: कुंडी में ब्रहस्पति का बड़ा महत्व होता है। ब्रहस्पति के अलावा सूर्य बहुत बड़ा रोल अदा करता है। उसके अलावा दशाएं ये सब चीजें होती है उनके आधार पर ही इन चीजों का परिणाम देखते हैं।


बैतूलवाणी-आप इतने वर्षों से कुंडली देख रहे हैं, इस दौर में कोई चुनौतीपूर्ण स्थिति सामने आई क्या?


डॉ. कांत दीक्षित-कभी-कभी कुछ विषय ऐसे होते हैं जिसमें सामने वाले को समझाना थोड़ा कठिन होता हे। जैसे मंगल को लेकर भी कुछ भ्रांतियां रहती हैं। कुछ ऐसे सौरमास और चंद्रमास इसको समझाने में भी कठिनाई आती है।


बैतूलवाणी-किसी कुंडली में खराब समय को उसे कैसे बताते हैं?


डॉ. कांत दीक्षित-क्या होता है, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। यह पत्रिका देखते समय सटीक बैठता है। कई बार ऐसा होता है कि हम पत्रिका में देख रहे हैं कि सामने वाले का समय खराब है। लेकिन यदि हम सामने वाले को अनावश्यक भयभीत कर दें तो उसके मन पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए हम उसको सतर्क कर देते हैं और उपाय बताते हैं। हम यह भी बताते हैं कि आप अपने विवेक और पुरूषार्थ से ऐसे समय को काट सकते हैं।


बैतूलवाणी- ज्योतिषी विज्ञान में आप ऐसे समय में क्या आप बताते हैं?


डॉ. कांत दीक्षित-जहां आपके गृह खराब है वहां उपाय बताए गए हैं। सबसे पहले जप, इसके मंत्र और इसकी निर्धारित संख्या बताई जाती है। दूसरा रत्न धारण कर सकते हैं, तीसरा उपवास और चौथा अपनी सामर्थ और सुविधा के अनुसार दान आदि कर सकते हैं। जो ग्रह शांति के प्रयासों में काम आते हैं।


बैतूलवाणी-भाग्य और कर्म के बीच क्या अंतर है?


डॉ. कांत दीक्षित-पुरूषार्थ से मनुष्य भाग्य को काफी हद तक अपने अनुकूल बना सकता है लेकिन कर्म जरूरी है। कर्म के अनुसार फल कितना मिलेगा यह ईश्वरीय विधान होता है।


बैतूलवाणी- यदि आपके स्थान का वास्तु खराब है लेकिन आपका प्रबल है तो कौन सा असर करता है?


डॉ. कांत दीक्षित-वास्तु वास्तव में पंचतत्वों का समन्वय है कि हमारे आसपास के वातावरण में जिस स्थान पर हम रह रहे हैं वहां वास्तु पूजन के बाद हम गृह प्रवेश करते हैं। और यदि हमारा भाग्य प्रबल है और वास्तु खराब है तो वास्तु प्रभाव तो डालेगा लेकिन किचिंत प्रभाव। लेकिन हम वास्तु की उपेक्षा भी नहीं कर सकते।


बैतूलवाणी-आपने श्रीरामचरित मानस में पीएचडी की है। राम से बड़ा राम का नाम क्या है?


डॉ. कांत दीक्षित-मैंने पहले अलग-अलग विषयों में पीएचडी करने का विचार किया था। फिर अचानक एक दिन श्रीरामचरित मानस पर पीएचडी करने का मन हुआ। मैंने सबसे पहले इस पर लघु शोध लिखा। फिर पीएचडी पूरी करी। राम के नाम की बात है तो इस पर कहा जाता है कि –
कहा कहूं मैं नाम बढ़ाई
राम न सकहई नाम गुणगाई
जिसको शिव जपते हैं उस राम नाम की महिमा अपरमपार है।


बैतूलवाणी-साढ़े साती शनि और ढ़ईया क्या है?


डॉ. कांत दीक्षित-शनि कर्म फल दाता है और हमारे जीवन का &0 वर्षों का सर्वेक्षण करने के लिए आता है। तो जब 12 वें भाव में आता है तो हमें पूर्व जन्म के हिसाब के कुछ फल देता है और जब हमारे सेकंड स्टेज के भाव में आता है तो वर्तमान के फल देता है। लेकिन शनि बुरा ही फल देता है ऐसा नहीं है। शनि के प्रभाव से बहुत उन्नति करने वाले भी होते हैं।

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