अब पराली जलाने की नहीं पड़ेगी जरुरत
Kheti Kisani – कई किसान, विभिन्न परिस्थितियों में, अक्सर खेतों में पराली जलाते हैं। इस प्रकार के जलाने से अक्सर आरोप उठाया जाता है कि इससे दिल्ली और आस-पास क्षेत्रों में वायु प्रदूषण बढ़ता है। पंजाब, हरियाणा, और यूपी के किसानों पर इस तरह के आरोप अक्सर लगे जाते हैं। साथ ही, अन्य समयों में, आलू की अधिकता या कीमत की वजह से कुछ स्थितियों में इसे सड़कों पर फेंक दिया जाता है। हालांकि, केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा ने विशेष अनुसंधान करके दिखाया है कि पराली और आलू, दोनों का समुचित और उपयुक्त इस्तेमाल किया जा सकता है।
बकरियों के अलावा, अन्य महत्वपूर्ण पशुओं के लिए भी इस अनाज को स्वादिष्ट चारा के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सीआईआरजी संस्थान में इसे बकरों और बकरियों के पोषण के लिए अध्ययन और विकास में विशेष ध्यान दिया जा रहा है। जब बकरे का मीट निर्यात होता है, तो पहले हैदराबाद के एक प्रमुख प्रयोगशाला में इसकी जांच की जाती है। जांच के दौरान सुनिश्चित किया जाता है कि मीट में किसी भी हानिकारक पेस्टिसाइड्स की अधिकता नहीं है। Also Read – Honorarium Hike – मानदेय को लेकर हजारों शिक्षकों-कर्मियों के लिए खुशखबरी
पराली और आलू को समान प्रमाण में मिलाकर साइलेज बैग में भरें और इसे 60 दिनों तक संग्रहित रखें। इस अवधि के बाद, इन्हें एन-एरोबिक माहौल में फर्मेंटेशन का सामना होगा। इस प्रक्रिया के बाद, यह खाद्य गाय-भैंस के अलावा बकरियों के लिए भी उपयुक्त हो जाता है। इस तकनीक की विशेषता यह है कि इसे बकरियों के लिए लंबे समय तक प्रयुक्त किया जा सकता है। हमारे अनुसंधान से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जब इस साइलेज को बकरियों को खिलाया गया, तो उनका वजन प्रतिदिन 40 ग्राम बढ़ता दिखाई दिया। इस प्रकार के चारे को साइलेज भी कहते हैं।
कितना आता है खर्च | Kheti Kisani
साइलेज तैयार करने की आपूर्ति में 50 किलो के लिए लगभग 450 से 500 रुपये का खर्च आता है। हालांकि कई स्थानों पर किसान पराली को मुफ्त में भी प्रदान कर देते हैं। साथ ही, साइलेज तैयार करने के लिए आलू की उन वैरायटी यों का उपयोग होता है जो बाजार में अधिकतर बिकने योग्य नहीं हैं, या जो मिलने में सस्ते भी होते हैं।
इन जगहों पर आती है आलू फेंकने की नौबत | Kheti Kisani
कभी-कभी आगरा, अलीगढ़, हाथरस, और फिरोजाबाद में दिसंबर और जनवरी महीने में आलू की बाजार में बिक्री में कमी आ सकती है, या फिर कुछ समय तक उसकी बजाय कौड़ियों को बेचना पड़ सकता है। पिछले साल, कुछ महीने पहले, आगरा के आलू एक से डेढ़ रुपये प्रति किलो तक बिके थे। अलीगढ़ और हाथरस से भरी गाड़ियां दिल्ली के आजादपुर मंडी में खरीदने के लिए कई दिनों तक प्रतीक्षा करती रहीं। हाथरस के कुछ वाहनों को ऐसा अनुभव करना पड़ा जब वे आलू बेचने के बजाय उन्हें निष्फल रूप में वापस लौटाना पड़ा। Also Read – Viral Video – अपनी कमजोरी को दरकिनार कर पैसे कमाने कड़ी मेहनत करता शख्स
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