भाजपा कार्यालय में अंतिम दर्शन के लिए रखी जाएगी पार्थिवदेह
Last appearance: बैतूल। जिले की राजनीति में धूमकेतु की तरह उभरे एवं चुनावी राजनीति में कई कीर्तिमान स्थापित करने वाले सुभाष आहूजा आज हमारे बीच नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद आज तडक़े उनका दुखद निधन हो गया। 76 वर्षीय श्री आहूजा अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं। भाजपा कार्यालय में अंतिम दर्शन के लिए उनकी पार्थिव देह रखी जाएगी। शुचिता की राजनीति करने वाले सुभाष आहूजा ने हमेशा लो प्रोफाइल रहकर पार्टी के प्रति संपूर्ण निष्ठा के साथ कार्य किया और पार्टी ने जो भी जिम्मेदारी दी उसका पालन किया। उन्हें राजनीति का संत कहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। केंद्रीय मंत्री डीडी उइके, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक हेमंत खण्डेलवाल , जन अभियान परिषद के उपाध्यक्ष मोहन नागर, भाजपा जिलाध्यक्ष सुधाकर पंवार सहित सभी विधायक एवं पार्टी कार्यकर्ताओं ने शोक व्यक्त किया है।
26 वर्ष की आयु में बने थे सांसद

1971 से 1976 के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा प्रधानमंत्री रहते हुए आपातकाल की घोषणा की थी और 1975 में इस आपातकाल के बाद सुभाष आहूजा सहित सभी विपक्षी नेताओं को जेल भेज दिया गया था। तभी से इन बंदियों को मीसाबंदी का नाम दिया। 1977 आते-आते देश में कांग्रेस के प्रति विद्रोह की भावना जनता में घर कर गई और जनता पार्टी का गठन हुआ। लेकिन बैतूल सीट से जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लडऩे के लिए कोई बड़ा नाम सामने नहीं आया। तब सुभाष आहूजा को चुनाव मैदान में उतारा गया और सीमित साधनों से चुनाव लडक़र उन्होंने तत्कालिन कांग्रेस सांसद एवं देश के बड़े कर सलाहकार नरेंद्र कुमार साल्वे को 87923 मतों के बड़े अंतर से चुनाव हराकर सांसद बनने का गौरव हासिल किया। इस तरह से उनके नाम बैतूल जिले के पहले गैर कांग्रेसी सांसद बनने का रिकार्ड दर्ज हो गया। उनके पूर्व इस सीट पर कांग्रेस के ही भीकूलाल चांडक 1952, 1957 और 1962 में तथा कांग्रेस के ही नरेंद्र कुमार साल्वे 1967 और 1971 में चुनाव जीते थे। सुभाष आहूजा के 1977 में सांसद बनने के बाद जनता पार्टी (भारतीय जनता पार्टी) को इस सीट से चुनाव जीतने के लिए 12 साल का इंतजार करना पड़ा।
जिले के पहले स्थानीय सांसद का गौरव मिला
1952 से 1977 तक कांग्रेस ने जिले से बाहर के लोगों को टिकट दी। वहीं जनसंघ (बाद में भाजपा) ने भी 1952 में गोपाल देशमुख, 1957 में नारायण राव वाडिवा, 1962 में संत कुमार नवगोपाल, 1967 में सुंदरलाल राय एवं 1971 में डॉ. बसंत पंडित को चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन यह सभी पराजित हुए और 1977 में स्थानीय उम्मीदवार के रूप में सुभाष आहूजा पहले ऐसे सांसद बने जो जिले के निवासी थे। सुभाष आहूजा के बाद जिले के स्थानीय उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए 19 साल का इंतजार करना पड़ा। और 1996 में पुन: विजय कुमार खण्डेलवाल के रूप में दूसरे स्थानीय उम्मीदवार भाजपा की टिकट पर निर्वाचित हुए। वहीं 1952 से 2024 तक के 72 वर्षों में कांग्रेस का कोई भी स्थानीय नेता जिले का सांसद नहीं बन पाया।
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