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Minister day: मध्यप्रदेश बीजेपी में लौटेगा 2003-04 वाला दौर? हेमंत खंडेलवाल ने दिए ‘मिनिस्टर डे’ की वापसी के संकेत

क्या मध्यप्रदेश बीजेपी में लौटेगा 2003-04

Minister day:भोपाल। मध्यप्रदेश बीजेपी में संगठन और सत्ता के समन्वय को मजबूत करने की दिशा में नए प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने पुराने दौर की यादें ताजा कर दी हैं। हाल ही में जिलाध्यक्षों के साथ हुई बैठक में खंडेलवाल ने निर्देश दिए कि अब विधायकों और मंत्रियों को भी पार्टी के जिला कार्यालयों में बुलाया जाए ताकि कार्यकर्ताओं की समस्याओं को सीधे सुना और सुलझाया जा सके। यह निर्देश इस ओर इशारा करता है कि क्या बीजेपी मुख्यालय में ‘मिनिस्टर डे’ की वापसी होने जा रही है? वह प्रयोग जो 2003-04 में हुआ था, जब मंत्री सप्ताह में दो दिन पार्टी मुख्यालय में बैठते थे और कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद करते थे।


2003-04 का मॉडल: जब संगठन सर्वोपरि था

2003 में जब मध्यप्रदेश में बीजेपी सत्ता में आई थी, तब कैलाश जोशी और कप्तान सिंह सोलंकी की जोड़ी ने संगठन में कई ऐतिहासिक प्रयोग किए थे।
उमा भारती सरकार में मंत्रियों को निर्देश दिए गए थे कि वे सप्ताह में दो दिन बीजेपी कार्यालय में बैठें और कार्यकर्ताओं की समस्याओं का मौके पर निपटारा करें। इससे संगठन और सरकार में सीधा संवाद कायम हुआ था और कार्यकर्ताओं में गहरा भरोसा बना था कि उनकी आवाज सत्ता तक पहुंच रही है।


नए अध्यक्ष, नया अंदाज: संगठन से संवाद की नई पहल

प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने पदभार ग्रहण करते ही संकेत दे दिए थे कि पार्टी में अब अनुशासन और संवाद को प्राथमिकता दी जाएगी। जिलाध्यक्षों के साथ बैठक में उन्होंने साफ किया कि पार्टी कार्यकर्ता ही आधार हैं, और नेताओं को अब फील्ड में ज्यादा समय देना होगा। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अब कोई विशेष दिन या विशेष कार्यकर्ता नहीं होगा—हर कार्यकर्ता विशिष्ट है।


कैलाश विजयवर्गीय ने की तुलना कैलाश जोशी से

बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने खंडेलवाल की कार्यशैली की सराहना करते हुए कहा कि उनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कैलाश जोशी की छवि दिखती है। यह बयान भी संगठन में उस दौर की वापसी के संकेतों को और मजबूती देता है, जिसमें संगठन के लोग सरकार को दिशा देते थे, न कि उसका अनुसरण करते थे।


राजनीतिक विश्लेषकों की राय: फिर से जाग सकता है समन्वय का मॉडल

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर का मानना है कि 2003-04 में जो प्रयोग हुआ था, उसकी मूल भावना थी कि सत्ता में बैठे नेता कार्यकर्ताओं की मेहनत को न भूलें। मंत्री खुद पार्टी कार्यालय में आकर मिलें, ताकि यह संदेश जाए कि सत्ता संगठन की ही एक इकाई है।
यदि खंडेलवाल इस प्रयोग को फिर से स्थापित करते हैं तो यह बीजेपी के लिए राजनीतिक और सांगठनिक मजबूती का जरिया बन सकता है।


क्या लौटेगा ‘मिनिस्टर डे’?

हेमंत खंडेलवाल के बयान और निर्देश इस ओर इशारा कर रहे हैं कि बीजेपी अब फिर कार्यकर्ताओं की ओर लौटना चाहती है। यदि आने वाले दिनों में ‘मिनिस्टर डे’ जैसे आयोजनों की औपचारिक शुरुआत होती है, तो यह मध्यप्रदेश की राजनीति में एक अहम संगठनात्मक सुधार के रूप में देखा जाएगा।

साभार… 

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