उपभोक्ता सुरक्षा और विवादों की आशंका भी
Rights: नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) छोटे लोन वसूलने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों को दूर से मोबाइल फोन लॉक करने की अनुमति देने पर विचार कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक आरबीआई अपनी निष्पक्ष व्यवहार संहिता (Fair Practices Code) में संशोधन करने जा रहा है, जिसमें ग्राहकों की सहमति और डेटा सुरक्षा से जुड़ी शर्तें शामिल होंगी।
क्या होगा नया नियम?
- बैंकों को अब यह पावर देने का प्रस्ताव है कि अगर ग्राहक किस्त न चुकाए तो वे दूर से किसी डिवाइस को लॉक कर सकें।
- परामर्श के दौरान तय किया गया है कि फोन लॉक करने से पहले ग्राहक की स्पष्ट सहमति लेना अनिवार्य होगा।
- साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि फोन लॉक होने के बावजूद ग्राहक का निजी डेटा सुरक्षित रहे और संवेदनशील जानकारी का दुरुपयोग न हो।
क्यों लाए जा रहे हैं ये कदम?
भारत में एक-तिहाई से अधिक इलेक्ट्रॉनिक सामान—जिसमें मोबाइल फोन शामिल हैं—छोटे लोन पर खरीदे जाते हैं। टेलिकॉम रेगुलेटर के अनुसार देश में 1.16 अरब से अधिक मोबाइल कनेक्शन हैं। सूत्रों का कहना है कि छोटे कर्ज (1 लाख रुपये से कम) में डिफॉल्ट की संभावना अधिक रहती है और नॉन-बैंकिंग फाइनेंसर इस श्रेणी के 85% लोन देते हैं। ऐसे में फोन लॉक करने जैसे तकनीकी उपाय वसूली की दक्षता बढ़ा सकते हैं।
किसे मिलेगा फायदा?
विशेषज्ञों के अनुसार यह कदम बजाज फाइनेंस, डीएमआई फाइनेंस, चोलामंडलम फाइनेंस जैसे संस्थानों के लिए बने प्रभावी वसूली उपकरण साबित हो सकता है क्योंकि इससे छोटे लोन की रिकवरी आसान होगी और जोखिम के आधार पर क्रेडिट उपलब्धता बढ़ सकती है।
उपभोक्ता कार्यकर्ताओं की चिंता
परन्तु उपभोक्ता अधिकार समूह इसे टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग का रूप बता रहे हैं। कैशलेस कंज्यूमर के संस्थापक श्रीकांत एल का कहना है कि मोबाइल फोन आज शिक्षा, रोजगार और वित्तीय सेवाओं का मुख्य जरिया है; यदि फोन लॉक किया गया तो यह लोगों को उनकी रोजमर्रा की आवश्यकताओं से वंचित कर देगा और दबाव बनाने का हथियार बन सकता है।
बैंलेन्स की चुनौती
नए नियमों को लागू करने के दौरान आरबीआई और सरकारी इकाइयों के सामने यह चुनौती होगी कि वे वसूली दक्षता और उपभोक्ता अधिकारों/डेटा सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखें। विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि मोबाइल लॉक जैसे कदम केवल अंतिम उपाय हों, ग्राहक को पर्याप्त चेतावनी व पुनर्विचार का मौका मिले और शिकायत निवारण तंत्र तेज़ एवं प्रभावी हो।
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