सात डॉक्टर तैनात, ओपीडी में एक भी नहीं! मरीज घंटेभर भटकते रहे
Shameful: भैंसदेही/शंकर राय। प्रदेश के “सर्वश्रेष्ठ अस्पताल” अवार्ड की दौड़ में शामिल बताया जा रहे भैंसदेही समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की असलियत शुक्रवार को खुलकर सामने आ गई। सुबह इलाज के लिए पहुंचे मरीज घंटों तक डॉक्टरों का इंतजार करते रहे, लेकिन ओपीडी में एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं था।
तीन-चार घंटे इंतजार के बाद कई मरीज मजबूर होकर प्राइवेट क्लिनिक पहुंच गए।
सबसे बड़ा सवाल —
जब अस्पताल में सात डॉक्टर पदस्थ हैं, तो फिर ओपीडी सूनी क्यों?
झल्लार अस्पताल की भी वही कहानी—दो डॉक्टर, पर ओपीडी खाली
भैंसदेही ही नहीं, झल्लार अस्पताल की स्थिति भी लगभग ऐसी ही मिली।
यहां दो डॉक्टर पदस्थ हैं—
- एक ट्रेनिंग पर,
- और दूसरा भी ओपीडी से गायब।
दोनों अस्पतालों की यह लापरवाही सीधे-सीधे मरीजों के जीवन से खिलवाड़ जैसी है।
रिपोर्टर ने CMHO को दिखाई वास्तविकता, कार्रवाई के निर्देश
जब बैतूल वाणी के रिपोर्टर ने यह स्थिति CMHO डॉ. मनोज हुरमाड़े को बताई तो उन्होंने तत्काल डॉक्टर भेजने की बात कही।
रिपोर्टर ने वीडियो कॉल पर लाइव स्थिति दिखाने की पेशकश की, जिस पर CMHO बोले—
“आपकी बात पर विश्वास है, मेरी पहली प्राथमिकता डॉक्टरों को तुरंत भेजना है।”
उन्होंने साथ ही लापरवाह डॉक्टरों को नोटिस देने की बात भी कही।
सब मिलकर बना लिया ‘3 दिन ड्यूटी–27 दिन छुट्टी’ का फार्मूला?
सवाल उठ रहा है कि BMO डॉक्टरों का बचाव क्यों कर रही हैं?
सूत्रों के अनुसार डॉक्टरों ने आपस में मिलकर एक अजीब-सा फॉर्मूला सेट किया है—
👉 महीने में सिर्फ 3 दिन ड्यूटी, बाकी 27 दिन आराम!
जबकि नियम के अनुसार
- सुबह 9 से दोपहर 2 बजे तक
- शाम 5 से 6 बजे तक
ओपीडी में उपस्थित होना अनिवार्य है।
लेकिन यहां डॉक्टर अपने मनमुताबिक आते-जाते हैं और प्रशासन आंखें मूंदे खड़ा है।
सीसीटीवी फुटेज सारा सच खोल देगा
अगर अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच हो जाए,
तो यह साफ हो जाएगा कि डॉक्टर
- कब आते हैं,
- कब जाते हैं,
- और कितना समय ओपीडी में बिताते हैं।
यह तथ्य स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करेगा।
आखिर कब जागेगा प्रशासन?
स्थिति साफ है—
भैंसदेही और झल्लार अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है।
मरीज भटक रहे हैं, इलाज को तरस रहे हैं,
जबकि डॉक्टर और अधिकारी सिर्फ कागज़ी खानापूर्ति में लगे दिखते हैं।
अब सवाल यह है—
क्या प्रशासन इसे गंभीरता से लेगा, या मरीजों को इसी तरह परेशान होना पड़ेगा?
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