भाग-तीन
Story: सावलमेंढ़ा।आशुतोष त्रिवेदी/ भैंसदेही ब्लॉक की धाबा पंचायत के अंतर्गत आने वाला रैयतवाड़ी प्राथमिक शाला स्कूल भी अपनी बदहाली की कहानी बया कर रहा है ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ग्रामीण अंचलों के अधिकांश प्राथमिक शाला स्कूल भवन जर्जर हालत में है, यही स्थिति रैयतवाढ़ी प्राथमिक शाला विद्यालय की है, जिसके कमरे की छत से प्लास्टर गिर रहा है, जर्जर भवन में शिक्षक अपनी जान हथेली पर रखकर छात्र एवं छात्राओं का भविष्य गढ़ रहे हैं।
जर्जर हो चुका भवन
विद्यालय भवन अब इतना जर्जर हो चुका है कि छात्रों और शिक्षकों के लिए छत से गिरता प्लास्टर, दीवारों से झड़ता सीमेंट और बारिश के दौरान कक्षाओं में पानी भरने जैसी समस्याएं शिक्षा व्यवस्था को बाधित कर रही है। कहा गया है कि शिक्षा जीवन में आगे बढऩे और सफल होने के लिए प्रेरित करने वाला साधन है, जो जीवन में आने वाली चुनौतियों को दूर करने की क्षमता प्रदान करता है। लेकिन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में इन दिनों शिक्षा अर्जन करना खुद एक चुनौती से कम नहीं है। ऐसा हम इसलिए कह रहें है क्योकि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में जिन परिस्थितियों में बच्चों को शिक्षा अध्ययन करना पड़ रहा है, वह किसी जोखिम से कम नजर नहीं आ रहा है, दरअसल इन क्षेत्रों में जर्जर भवनों में नन्हें मुन्ने बच्चों को शिक्षा दी जा रही है।
छतों से गिर रहा प्लास्टर
जिम्मेदारों को कई बार इन गंभीर समस्याओं से अवगत कराया गया मगर अफसोस आज भी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में बच्चों को जर्जर भवन में बैठकर पढ़ाई करना पड़ रहा है। पूरा मामला भैंसदेही विकासखंड की धाबा पंचायत के रैयतवाड़ी प्राथमिक शाला स्कूल का है। जहां की शाला भवन की छतें जर्जर हो चुकी है छतों से प्लास्टर गिर रहे हैं। लेकिन इन्हीं जर्जर हो चुके भवनों में बच्चों को बैठाकर पढ़ाई करवाना पड़ रहा है।
कभी भी हो सकती है गंभीर दुर्घटना
उल्लेखनीय है कि शिक्षा का अधिकार के तहत सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदाय किये जाने का प्रावधान है लेकिन यहां सवाल यह है कि ऐसे जर्जर भवनों में बच्चों का भविष्य आखिर कितना सुरक्षित है? और क्या ऐसी परिस्थिति में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदाय करने वाले प्रावधानों का महत्व रह जाता है?
Leave a comment