Crisis: भोपाल। प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के सुपोषण के लिए चलाई जा रही मध्याह्न भोजन योजना अब संकट में पड़ती नजर आ रही है। प्रदेश के 96 हजार से अधिक सरकारी स्कूलों में भोजन उपलब्ध कराने वाले स्व-सहायता समूहों को पिछले तीन महीनों से भुगतान नहीं किया गया है। भुगतान में देरी के कारण ये समूह कर्ज लेकर भोजन व्यवस्था को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब हालात इस कदर बिगड़ गए हैं कि 26 जनवरी से भोजन वितरण बंद होने की नौबत आ सकती है।
स्व-सहायता समूहों की कठिनाइयां
स्व-सहायता समूहों की महिलाओं का कहना है कि किराना दुकानदार अब उधार देने को तैयार नहीं हैं। कई महिलाएं गहने गिरवी रखकर और कर्ज लेकर बच्चों को भोजन उपलब्ध करा रही हैं। इस स्थिति में उनके लिए भोजन वितरण जारी रखना असंभव हो गया है। शिवपुरी स्थित श्री कृष्णा स्व-सहायता समूह ने बताया कि अब रसोई में न आटा है, न सब्जी और न ही अन्य आवश्यक सामान।
1995 में शुरू हुई योजना
केंद्र सरकार ने 1995 में सरकारी स्कूलों में बच्चों की कुपोषण समस्या को दूर करने और स्कूल छोड़ने की दर कम करने के उद्देश्य से मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत की थी। हालांकि, वर्तमान में योजना की गुणवत्ता और प्रबंधन पर सवाल उठ रहे हैं।
भुगतान में देरी का कारण
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर सचिव दिनेश जैन ने बताया कि यह योजना केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त भागीदारी से चलती है, जिसमें 60% योगदान केंद्र का और 40% राज्य का होता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर स्व-सहायता समूहों को 2-3 महीने का भुगतान लंबित है, तो इसकी जांच कराई जाएगी।
एडवांस भुगतान की पुरानी व्यवस्था खत्म
स्व-सहायता समूहों के पदाधिकारियों के अनुसार, 2013 तक उन्हें एडवांस राशि मिल जाती थी, जिससे वे नकद सामान खरीदते थे। अब भुगतान में देरी होने से उधारी पर निर्भरता बढ़ गई है, लेकिन दुकानदार अब उधार देने से इनकार कर रहे हैं।
76 लाख विद्यार्थियों पर असर
मध्यप्रदेश के 98 हजार स्कूलों में लगभग 76 लाख विद्यार्थी पढ़ते हैं, जिनमें से 96 हजार स्कूलों में स्व-सहायता समूहों द्वारा भोजन उपलब्ध कराया जाता है। शेष 2 हजार स्कूलों में भोजन व्यवस्था ठेके पर आधारित है।
महिलाओं का मोहभंग
प्रदेश की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्व-सहायता समूहों को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन भुगतान में देरी के कारण महिलाएं अब इससे दूर होने की सोच रही हैं। प्रांतीय महिला स्व-सहायता समूह महासंघ की अध्यक्ष सरिता सिंह बघेल ने इस मुद्दे को पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री से लेकर प्रशासन तक उठाया है, लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है।
आगे की राह
अगर जल्द ही स्व-सहायता समूहों को भुगतान नहीं किया गया, तो यह योजना प्रदेश के लाखों बच्चों के पोषण और शिक्षा पर गंभीर असर डाल सकती है। महिलाओं का कहना है कि वे इस स्थिति में अधिक समय तक योगदान नहीं दे पाएंगी, और भोजन वितरण बंद करना उनकी मजबूरी बन सकता है।
source internet… साभार….
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