Sunday , 23 February 2025
Home Uncategorized Spiritual: महाकुंभ से वाराणसी ही क्यों जाते हैं नागा साधु…?
Uncategorized

Spiritual: महाकुंभ से वाराणसी ही क्यों जाते हैं नागा साधु…?

महाकुंभ से वाराणसी ही क्यों जाते हैं

Spiritual: प्रयागराज महाकुंभ के बाद अखाड़ों के काशी जाने की परंपरा वाकई रोचक और आध्यात्मिक रहस्यों से भरी हुई है। यह आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें नागा संन्यासी गंगा को अपना पुण्य समर्पित करने के बाद शिव की नगरी काशी जाकर दिव्य ऊर्जा प्राप्त करते हैं।

गंगा को ‘मां’ मानकर उन्हें पुण्य अर्पित करना और फिर काशी में भगवान शिव से आध्यात्मिक ऊर्जा लेना—यह प्रक्रिया दर्शाती है कि संत अपने तप और साधना का फल लोककल्याण के लिए समर्पित कर देते हैं। इससे उनके साधनात्मक बल की पुनर्प्राप्ति भी होती है।

यह परंपरा धार्मिक मान्यताओं और संप्रदायों की भिन्नता के कारण है। संन्यासी अखाड़े भगवान शिव के उपासक होते हैं और शिव को ही अपना गुरु, इष्ट और आराध्य मानते हैं। काशी को शिव की नगरी कहा जाता है, इसलिए महाकुंभ के बाद संन्यासी अखाड़े वहां प्रवास करते हैं। वहीं, वैष्णव अखाड़े भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानते हैं। उनकी परंपराएं और रीति-रिवाज अलग होते हैं, इसलिए वे महाकुंभ के बाद काशी जाने की इस परंपरा में शामिल नहीं होते। वैष्णव संत आमतौर पर अन्य तीर्थ स्थलों, जैसे वृंदावन, अयोध्या, या द्वारका की ओर प्रवास करना अधिक पसंद करते हैं। संन्यासी अखाड़ों के काशी जाने की यह परंपरा उनके शिवोपासना से जुड़े होने के कारण विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है।

मसान की होली या चिता भस्म होली काशी की एक अनूठी और रहस्यमयी परंपरा है, जो भगवान शिव और मृत्यु की अवधारणा से जुड़ी हुई है। यह होली चिता भस्म (राख) से खेली जाती है और इसे मृत्यु पर विजय का प्रतीक माना जाता है।

मसान की होली की परंपरा और महत्व

  1. भगवान शिव की उपासना – यह होली विशेष रूप से शिव भक्तों के लिए होती है। मान्यता है कि महादेव स्वयं श्मशानवासी हैं और वे भूत, प्रेत और औघड़ों के भी देवता हैं।
  2. मृत्यु से भयमुक्ति – यह परंपरा हमें मृत्यु के सत्य को स्वीकारने और उससे डरने के बजाय उसे जीवन का एक अभिन्न अंग मानने की सीख देती है।
  3. काशी का विशेष आयोजन – यह होली हर साल महाशिवरात्रि और होली के बीच मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट पर खेली जाती है। इस साल (2025 में) यह आयोजन 10 मार्च को हरिश्चंद्र घाट और 11 मार्च को मणिकर्णिका घाट पर होगा।
  4. औघड़ और नागा साधुओं की भागीदारी – इस अनोखी होली में नागा साधु, अघोरी और शिव भक्त चिता की राख उड़ाकर शिव की भक्ति में लीन होते हैं।
  5. लोक मान्यता – माना जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति चिता भस्म की होली में शामिल होता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आध्यात्मिक संदेश

मसान की होली केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के पार जाने वाली शिव तत्व की गहरी साधना है। यह हमें बताती है कि मृत्यु का भय केवल अज्ञानता है और जो शिव की भक्ति में लीन हो जाता है, वह इस भय से मुक्त हो जाता है।

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Management: अस्थमा और भीड़-भाड़ वाले स्थानों में सांस की दिक्कत: समाधान और प्रबंधन

Management: भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर सांस लेने में कठिनाई अस्थमा या श्वसन...

Assault: नशे में चाकू से किए वार से युवक की निकली अतड़ियां

घायल अवस्था में परिजनों ने कराया भर्ती, भोपाल रेफर Assault: बैतूल। आपस...

Assault: नशे में चाकू से किए वार से युवक की निकली अंतड़ियां

घायल अवस्था में परिजनों ने कराया भर्ती, भोपाल रेफर Assault: बैतूल। आपस...

Fire: एफसीआई गोदाम में लगी आग

Fire: बैतूल। नगर के इटारसी रोड पर एफ सी आई गोदाम के...