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Dilapidated buildings: ऐसे कैसे स्कूल चले हम? जर्जर भवनों में कैद बचपन

ऐसे कैसे स्कूल चले हम? जर्जर भवनों

प्राशा का खस्ताहाल हुआ भवन, दम तोड़ रही शिक्षा व्यवस्था

Dilapidated buildings: सांवलमेंढ़ा(आशुतोष त्रिवेदी)। जहां एक ओर प्रदेश सरकार स्कूल चले अभियान चला रही है। वहीं दूसरी ओर खस्ताहाल स्कूल की छत के नीचे बैठने के लिए बच्चे मजबूर हो रहे हैं। ये आलम है भैंसदेही ब्लॉक के कोथलकुण्ड पंचायत में संचालित प्राथमिक शाला झिरी स्कूल का जहां स्कूली शिक्षा सुविधा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाती है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जर्जर भवनों में कई स्कूल संचालित हो रहे है। वहीं एक ओर सरकार संपूर्ण सुविधाओं से लैस स्कूल बना रही है तो दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में बच्चे डर के साये में पढ़ रहे हैं।


आज भी जजर्र हो चुके स्कूल भवन में बच्चों को बैठने की मजबूरी बनी हुई हैं। यहां बारिश के दिनों में छत से पानी टपकता है। वहीं अब स्लेब से प्लास्टर गिरने लगे है, लेंटर की रॉड स्पष्ट दिखने लगी है, भवन की दीवार में कई जगहो पर दरारें आसानी से देखी जा सकती है। जहां शिक्षा की अलख जजर्र व जुगाड़ के भवनों से जगाई जा रही हो वहां हम गुणवक्तापूर्ण शिक्षा की बात करें तो इसे शायद लोग हजम न कर पाएं।
जिले के भैंसदेही ब्लॉक के झिरी में प्राथमिक शाला स्कूल की भवन जर्जर हालत में है। मेंटेनेंस न होने की वजह से भवन खस्ताहाल हो गया है। ऐसे क्षतिग्रस्त भवन में बच्चे पढऩे को मजबूर हैं। बारिश के मौसम में छत से इतना पानी टपकता है कि बच्चों के स्कूल बैग व किताबें तक गिली हो जाती है।


यहाँ की इस अव्यवस्था से नाराज पालक व शाला समिति कई दफे राजनेताओं के साथ ही अधिकारियों से मिलकर चर्चा कर चुकी है।लेकिन अब तक किसी भी जिम्मेदार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। जिसके चलते इस स्कूल में बच्चों की मजबूरी बन गई है इसी जजर्र हो चुके भवन में बैठकर शिक्षा ग्रहण करने की ये स्थिति है ग्रामीण अंचलों की ग्रामीण नए भवन निर्माण की मांग लंबे समय से कर रहे है जिससे बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने में किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना ना करना पड़े। ऐसे पढ़ेंगे तो कैसे बढ़ेंगे नौनिहाल, जहां जर्जर भवन में होता है संचालन, डर का साया हमेशा बना रहता है।


डर के साये में भविष्य गढ़ते नौनिहाल


परिस्थितियां चाहे जो भी हो, इरादे काफी मजबूत हैं तपती धूप हो या बारिश, मन में एक ही लगन है कि स्कूल चलें हम लेकिन क्या प्रशासन इन बच्चों को बुनियादी सुविधाएं देने की इच्छाशक्ति रखता है, जितनी इच्छाशक्ति इन बच्चों में पढ़ाई को लेकर है।

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