भरोसेमंद साबित नहीं हो पा रहे कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी!
Political Review: भोपाल(ई-न्यूज) (भाग-6)। संगठन हो या पार्टी… शीर्ष नेतृत्व जब किसी को कोई जिम्मेदारी देता है तो उस पर भरोसा भी होना चाहिए। इसके साथ ही जिसे जिम्मेदारी दी गई है उसे पर्याप्त समय भी मिलना चाहिए ताकि वह अपनी परफार्मेंस दिखा सके। लेकिन देखने में आया है कि कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में जितने भी प्रभारी बनाए उन पर पार्टी नेतृत्व को ना तो अधिक भरोसा होता है और ना ही उन्हें पर्याप्त समय दिया जाता है। यही वजह है कि अंतिम विकल्प के रूप में उन्हें बदल दिया जाता है। कम से कम मध्यप्रदेश में तो यही हो रहा है। यदि बीते 7 सालों की बात करें तो अब तक मध्यप्रदेश में कांग्रेस 7 नेताओं को प्रभारी बना चुकी है। जब तक प्रभारी प्रदेश को समझता है तब तक उसका कार्यकाल खत्म कर दिया जाता है। अब वर्तमान में मध्यप्रदेश की कमान हरीश चौधरी को दी गई है।
गांधी परिवार के करीबी ही बनते हैं प्रभारी
राजनैतिक समीक्षकों का यह मानना है कि कांग्रेस अधिकांशत गांधी परिवार के करीबों को ही प्रभारी, महासचिव जैसे पद पर आसीन करती है। इतना ही नहीं जरा सी भी इन्होंने कोई बयानबाजी की या फिर कांंग्रेस नेतृत्व को ऐसा लगता है कि उनसे कोई चूक हो गई तत्काल प्रभाव से प्रभारियों को बदल दिया जाता है। प्रभारियों के मामले में मध्यप्रदेश हमेशा से ही बदलाव देखते आ रहा है। समीक्षकों का मानना है कि जब तक प्रभारियों पर भरोसा करते हुए उन्हें समय नहीं दिया जाएगा तब तक वह अपनी परफार्मेस नहीं दिखा सकेंगे।
वर्तमान प्रभारी ने कहा था सीखने आया हूं
मध्य प्रदेश में लगातार कमजोर होती कांग्रेस को फिर से संजीवनी देने के लिए पार्टी नेतृत्व ने एक बार फिर फरवरी 2025 में प्रदेश प्रभारी बदल दिया था और इसकी जिम्मेदारी गांधी परिवार के करीबी और राजस्थान के पूर्व मंत्री हरीश चौधरी को सौंपी गई है। प्रभार मिलने के बाद से श्री चौधरी मध्यप्रदेश का दौरा कर रहे हैं। और हाल ही में 3 जून को कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी के कार्यक्रम में भी सक्रिय रहे। हरीश चौधरी का एक बयान तब राजनीति में चर्चा का केंद्र बन गया जब उनसे प्रदेश में पार्टी को मजबूती देने की रणनीति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा कि मेरे पास कोई रणनीति नहीं है, मैं यहां सीखने आया हूं।
एमपी बनी प्रभारियों की प्रयोगशाला
राजनैतिक समीक्षकों का मानना है कि कांग्रेस प्रदेश में अपने आप को पुन: मजबूत करने का प्रयास कर रही है और इसी कड़ी में पिछले 7 वर्षों में 7 प्रभारी बदल चुके हैं जिससे यह स्पष्ट हो रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व स्वयं असमंजस में है और 2020 में तो ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित 25 विधायकों के कांग्रेस छोडक़र जाने और 15 महीने की कांग्रेस सरकार गिरने के बाद से कांग्रेस यह नहीं समझ पा रही है कि ऐसा कौन सा प्रयोग करें जिससे कांग्रेस सत्ता के निकट आ सके? इससे यह साफ झलकता है कि नेतृत्व असमंजस में है और लगातार प्रयोग कर रहा है। हर नए प्रभारी के साथ उम्मीदें जुड़ती हैं, लेकिन नतीजे उम्मीद के उलट रहते हैं।
7 वर्ष में ऐसे बदले 7 प्रभारी
दूसरी पार्टी से कांग्रेस में आए समाजवादी छवि के राजस्थान निवासी मोहन प्रकाश पार्टी में इतने ऊपर उठे कि राष्ट्रीय महासचिव तक बन गए। और उसके बाद 2017 तक मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी रहे। इसके बाद उन्हें हटाकर दीपक बावरिया को प्रभारी बनाया गया जिनका कार्यकाल भी 2 साल 7 माह रहा। श्री बावरिया के बाद महाराष्ट्र के दिग्गज नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक भी मध्यप्रदेश प्रभारी बने लेकिन 2 साल 4 माह में उनका कार्यकाल खत्म हो गया। इसके बाद दिल्ली के पूर्व सांसद जय प्रकाश अग्रवाल को प्रभारी बनाया गया लेकिन 11 माह बाद उनकी भी छुट्टी कर दी गई। फिर राहुल गांधी के कट्टर समर्थक और सलाहकार माने जाने वाले हरियाणा के रणजीत सुरजेवाला भी प्रदेश में भेजे गए लेकिन 4 माह में ही उनकी रवानगी हो गई। फिर राहुल गांधी की किचन केबीनेट के सदस्य माने जाने वाले राजस्थान के ही भंवर जितेंद्र सिंह प्रभारी बनाए गए लेकिन उन्हें भी 1 साल 2 माह का ही समय दिया गया और फरवरी 2025 में राजस्थान के हरीश चौधरी को जिम्मेदारी दी गई।
Leave a comment