Escape: खंडवा (मध्य प्रदेश)। आदिवासी बहुल खालवा ब्लॉक में कुपोषण के बाद अब पलायन सबसे गंभीर समस्या बन गया है। रोजगार की कमी और गरीबी के चलते यहां के लोग बड़ी संख्या में महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और गुजरात जैसे राज्यों में मजदूरी करने के लिए पलायन कर रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि यह पलायन अब स्टाम्प पेपर पर एग्रीमेंट के जरिए हो रहा है।
दिवाली के बाद इस क्षेत्र के सैकड़ों गांवों से मजदूर परिवारों का रुख दूसरे राज्यों की ओर हो जाता है। सोयाबीन की कटाई के बाद बेरोजगारी बढ़ने से ये लोग गन्ना कटाई और निर्माण कार्यों में लग जाते हैं। खालवा, आशापुर, खार और सावलीखेड़ा जैसे कुछ गांवों को छोड़कर लगभग हर गांव से मजदूर पलायन कर रहे हैं।
गांवों में बचे सिर्फ बुजुर्ग, बच्चे और मवेशी
पलायन की स्थिति इतनी भयावह है कि कई गांव लगभग खाली हो चुके हैं। घरों में सिर्फ बुजुर्ग और छोटे बच्चे बचे हैं। मजदूरी के लिए गए कई आदिवासियों को बंधुआ मजदूरी, उत्पीड़न और महिलाओं पर अत्याचार जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
एग्रीमेंट के जरिए 20 लोगों का पलायन
दैनिक भास्कर की जांच में सामने आया कि खालवा ब्लॉक के आड़ाखेड़ा निवासी हीरालाल काजले ने महाराष्ट्र के सोलापुर निवासी लिंगेश्वर एकनाथ शिंदे से एक समझौता (एग्रीमेंट) किया। इसके तहत हीरालाल के परिवार के 10 जोड़े यानी 20 लोग गन्ना काटने के लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक में काम करने गए।
प्रत्येक जोड़े को ₹50,000 अग्रिम दिए गए — कुल ₹5 लाख रुपए का सौदा तय हुआ।
हरसूद में सालाना 2,000 से ज्यादा ऐसे समझौते
हरसूद बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील जगदीश पटेल के मुताबिक, हरसूद क्षेत्र में हर साल करीब 2000 एग्रीमेंट दर्ज होते हैं। प्रत्येक समझौते में 20 से लेकर 150 मजदूरों तक के नाम शामिल होते हैं।
पटेल ने बताया कि यह व्यवस्था “कानूनी” दिखती जरूर है, लेकिन कई बार मजदूरों को धोखा, कम भुगतान या बंधुआ स्थितियों में रखा जाता है।
खालवा की भौगोलिक और आर्थिक स्थिति
खालवा ब्लॉक की आबादी करीब 2.5 लाख है, जिसमें 86 ग्राम पंचायतें और 147 गांव शामिल हैं।
यह इलाका हरदा, बैतूल, बुरहानपुर और महाराष्ट्र की सीमाओं से घिरा है। सीमावर्ती स्थिति के कारण यहां से मजदूरों का दूसरे राज्यों में पलायन आसान हो जाता है। रोजगार की कमी और सरकारी योजनाओं के कमजोर क्रियान्वयन ने स्थिति को और बदतर बना दिया है।
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